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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __नय की वजह से ही अलग-अलग । संप्रदाय बने हैं। नाव में अगर संतुलन नहीं हो तो नाव डूब जाती है । उसी प्रकार अकेले नय के आधार पर स्थापित धर्म भी नष्ट हो जाता है । सभी सातों नय जब एकत्र होते हैं, तब प्रमाण बनता है । जैसे सौंठ और गुड़ के गुण अलग-अलग होते हैं । सौंठ वातनाशक है और गुड़ पित्तशामक है । किंतु जब सौंठ और गुड़ एकत्र हो जाते हैं तब वे वात, पित्त और कफ तीनों को दूर करते हैं । नय और प्रमाण का दर्शन जीवन में भी होता है । पहली मंजिल और दूसरी मंजिल यह नय है और अंतिम मंजिल यह प्रमाण है । पहले मजले पर से होनेवाला दर्शन एकांगी होता है लेकिन अंतिम मंजिल पर से होनेवाला दर्शन संपूर्ण होता है। सब नयों के समन्वय को प्रमाण कहते हैं । एक-एक रुपया मिलकर सौ रुपये बनते हैं । एक रुपया अर्थात् नय और सौ रुपये अर्थात् प्रमाण । नय के आधार पर चलनेवाला जगत् औरों के विचारों को जान नहीं सकता । इसीलिए विचारों को नय से शुरू करना चाहिए और प्रमाण से पूर्ण करना चाहिए । है अकेला नय या अकेला प्रमाण चल नहीं, 30 For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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