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२०. आत्मा और कर्म
आत्मा और कर्म दूध और पानी की तरह मिल गये हैं । इस वजह से उसका रंग बदल गया है । कर्मों से आत्मा जडवत् बन गयी है । वास्तव में आत्मा पारदर्शक है किंतु जड़ के प्रति प्रेम की वजह से वह अपना स्वभाव भूल गयी है । उसका उद्धार करना है, उसे शुद्ध करने की प्रक्रिया करनी है । अतः आत्मा को पहचानने का प्रयत्न करो । साधना की प्रक्रिया से ही आत्मा की पहचान होगी । जिस प्रकार अत्यंत गरम लोहे के गोले के अणु - अणु में गरमी व्याप्त होती है, उसी प्रकार आत्मा के प्रदेशों पर कर्म लगे हुए हैं । उसके उद्धार के लिए तपश्चर्या और ज्ञानयोग दोनों की आवश्यकता है ।
यदि आत्मा में एकाग्रता और रस जागृत हो जाय तो वह तुरन्त ही परमात्मा के समान बन जाती है । इसी तरह ज्ञानियों ने अंतर्मुहूर्त में कर्म खपाकर केवलज्ञान प्राप्त किया है ।
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