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१९. पथप्रदर्शक श्रुतज्ञान आत्मा के लिए पथप्रदर्शक के समान और आत्मा को तारनेवाला है । सम्यक् दृष्टि के पास अगर मिथ्याश्रुत आ जाय तो वह भी अलौकिक बन जाता है और मिथ्यात्वी के पास अगर आगम आ जाय तो आगम भी लौकिक बन जाता है । इसका कारण है अज्ञान । दवा विषमय होते हुए भी विधि के अनुसार लेने से रोग मिटाती है। ___मतिज्ञान कारण है और श्रुतज्ञान कार्य । कारण और कार्य को अलग नहीं किया जा सकता । मतिपूर्वक ज्ञान बहिर्ज्ञान है ।
जिस ज्ञान के द्वारा सामान्य व्यवहार चलता है वह मतिज्ञान है । मति अर्थात् समझ और श्रुत अर्थात् सुना हुआ।
भगवान महावीर स्वामी जो बोले, वह गौतम स्वामीने सुना और उसमें से आगम बनाये गये । इसी प्रकार वाणी श्रुत बन गई ।
वस्तु की समझ मति है, वस्तु का नाम श्रुत है । पूर्वभूमिका मतिज्ञान है और उत्तरभूमिका श्रुतज्ञान है ।
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