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१८. सम्यक्त्व
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जब 'सम्यक्त्व' आता है, तब विकास का बीज बोया जाता है । मोक्षप्राप्ति के साधन सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र हैं । सम्यक् दर्शन से मोक्ष का अकुंर प्रगट होता है ।
जिस प्रकार स्वस्थ मनुष्य को भूख लगती है, उसी प्रकार जिसका मन तुंदुरस्त होता है, उसे सम्यक् दर्शन प्रकट होता है । मन के रोगी सम्यक् दर्शन को कभी प्राप्त नहीं कर सकते हैं । भव्य आत्मा सम्यक् दर्शन की अधिकारिणी बन सकती है । जिनकी भवितव्यता परिपक्व हो गई हो, वे शीघ्र सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते हैं । उच्च धर्मी को या परमात्मा की मूर्ति को देखकर भी सम्यकत्व प्रकट होता है । एक में चेतन काम करता है, दूसरे में जड़ |
आगम, उपदेश, मूर्ति, सुवाक्य इत्यादि सम्यक्त्व - प्राप्ति के साधन हैं ।
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संयमधारी का स्मरण हमें संयम दिलाता है । रावण के एक मित्र ने रावण से कहा, “यदि आप राम का वेश धारण करके सीता के सामने जायेंगे, तो सीता तुरन्त आपके सामने देखेगी ।" इस पर रावण कहता है कि "जब मैं रोम का स्मरण करता हूँ, तब मुझे किसीके सामने देखने की भी इच्छा नहीं होती और संसार छोड़कर योगी बन जाने की इच्छा होती है" । सच है प्रभु का स्मरण करने से हमारी आत्मा प्रभुमय बन जाती है ।
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