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आवश्यकता है
तपस्या अपनी शक्ति के अनुसार ही करनी चाहिए । साथ ही उपवास आदि की तपस्या के बाद पारणा करते समय भी बहुत सावधानी रखनी चाहिए और खुराक बहुत धीरे- धीरे लेना चाहिए |
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तप सूर्य के समान है ; अतः तपस्या करने वाले को अपना दिल - दिमाग बहुत ठंडा रखना चाहिए । तपस्या के समय क्रोध करना उचित नहीं । जैसे लोहे के छड़ का छो, गरम होकर लाल हो जाय तो अच्छा है, पर उसकी गरमी का हाथ तक पहुँच जाना तथा उसको जला देना अच्छा नहीं ।
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वाणी तो संयत भली, संयत भला शरीर पर जो चित्त संयत करे, वही संयमी वीर ॥ रण सहस्र योद्धा लड़े, जीते युद्ध हजार । पर जो जीते स्वयं को, वही शूर सरदार ॥ मन के धर्म सुधार ले, मन ही प्रमुख प्रधान । कायिक वाचिक कर्म तो, मन की ही संतान ॥
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