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१७. तपश्चर्या व स्वास्थ्य
जिस प्रकार आग कचरे को जलाकर राख कर देती है, उसी प्रकार तपश्चर्या भी पेट के कचरे को जला कर भस्म कर देती है । इसीलिए उपवास आदि की तपस्या करने वाले दीर्घजीवी होते हैं । तपस्या से शरीर के विकार तथा रोग दूर होते हैं । शरीर यदि रोग रहित हो तो मन भी निर्मल बनता है, जिसके फलस्वरूप आत्मा शुद्ध होती है । इस प्रकार धर्माराधन के लिए पहले शरीर का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है । अगर शरीर बीमार हो तो मन व्यग्र रहता है । तपस्या शरीर के 'ओइलिंग का काम करती है, उससे पाचन तन्त्र को आराम मिलता है । शरीर,मन और आत्मा अगर निर्मल हों तो धर्म की भावना भी शुद्ध होती है । इसीलिए यथाशक्ति तप अवश्य करना चाहिए । शक्ति होने पर भी जो तपस्या नहीं करता, वह भी दोष का भागी होता है ।
तपश्चर्या से शरीर के कई रोग नष्ट हो जाते हैं । जैसे चर्मरोग और सूजन में आयंबिल बहुत लाभदायक होता है ।
परन्तु तपश्चर्या भी विधिपूर्वक करने पर ही फलदायी होती है । इसके अतिरिक्त तपस्या करने में बहुत सावधानी रखने की
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