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९. मूल्यवान वस्तु वस्तु जितनी मूल्यवान होती है, उसको जाँचने का, नापने का साधन उतना ही सूक्ष्म होता है । लकड़ी से ज्यादा अनाज मूल्यवान होता है, इसलिए उसे तोलने का साधन तराजू छोटा होता है । सुवर्ण की अपेक्षा हीरे और रत्न अधिक मूल्यवान होते हैं, अतः उनको तोलने का साधन और भी सूक्ष्म होता है ।
जगत् में सबसे मूल्यवान वस्तु धर्म ही है । इसलिए उसको सूक्ष्म बुद्वि से ही समझा जा सकेगा । तुला बराबर न हो तो तोल बराबर जाना नहीं जा सकता।
हमारी बुद्धि सूक्ष्म और स्थिर होनी चाहिए । हमारे चैतन्य के अंदर जो तत्त्व पड़े हैं, उन्हें परखने के लिए सूक्ष्म बुद्धि होनी चाहिए । इस दृष्टि से अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को जीवन का ध्येय बनाना चाहिए । प्रभु में सूक्ष्मता और स्थिरता दोनों ही हैं । धर्म तारनेवाला है वह जीवन में एक साथी के समान है । इसलिए वह सर्वाधिक मूल्यवान् वस्तु है ।
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