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१०. धर्म और विज्ञान
भौतिक पदार्थों को प्राप्त करने के लिए हम जितना परिश्रम करते हैं, उतना श्रम, उतनी बुद्धि का उपयोग अगर हम आत्मा के लिए करें तो निःसन्देह आत्मा का कल्याण हो जाय । धर्म के विषय में चारित्र्य, बुद्धि और स्थिरता ये सब चाहिए । पात्र भी उत्तम होना चाहिए ।
धर्म के लिए ज्ञान चाहिए । धर्म को विज्ञानयुक्ति दृष्टि से पहचानना होगा ।
पानी के तले अगर हीरा पड़ा हो और पानी स्थिर न हो तो हीरा दिखाई नहीं पडता उसी प्रकार आत्मा में यद्यपि अनंत सामर्थ्य भरा पड़ा है, फिर भी हमारी चंचलता की वजह से हम आत्मा का उद्धार कर नहीं पाते ।
वस्त्र जितना अच्छा होता है, उसका मूल्य उतना ही अधिक होता है । इसी प्रकार लोहे के एक टुकड़े की कीमत एक रुपया होती है, लेकिन उसमें से ऑपरेशन आदि के लिए जब यंत्र या साधन सूक्ष्म बना लिया जाता है, तो उसकी कीमत अनेकगुना बढ़ जाती है । उसी प्रकार इस जीवन को भी हमें तप-त्याग द्वारा सूक्ष्म एवं उपयोगी बनाकर आत्मा को ऊर्ध्वगामी बनाना है ।
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