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उनका रक्त दूध में परिवर्तित क्यों न हो ?
भगवान ने मधुर वाणी में कहा, “ चंडकौशिक ! तू अब समझ, चेतन ! अब समझ !”
चिंतन, मनन और ध्यान से निःसृत शब्द सबकुछ बदल सकते हैं ।
भगवान की वाणी सर्प के हृदय में सीधी उतर गई । उसके भाव परिवर्तित हो गये और जातिस्मरण ज्ञान पैदा होते ही वह अपना मस्तक भगवान् के चरणों में नवा कर पड़ा रहा । आखिर इस पश्चात्ताप तथा सहनशीलता के कारण उसे स्वर्ग प्राप्त हुआ ।
'योग' मन की तालीम है । वचन और काया को चलाने वाला मन है । मन की भाप के द्वारा ही जीवन का एंजिन चलता है । अस्थिर मन सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता ।
मनुष्य का मन जब परमात्मा में एकाग्र हो जाता है, तब पापों का पुंज भी थोड़े ही समय में नष्ट हो जाता है । योग पाप का नाश करता है । योग द्वारा आत्मध्यान से आत्मा में प्रकट हुई अग्नि सभी कर्मों को जला डालती है । योग से वर्तमान जीवन को भी परिवर्तित कर दिया जाता है । उससे आधि-व्याधि दूर हो जाती है । योग पारसमणि है ।
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