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पर अत्यंत प्रेम था, इसलिए संसार का त्याग कर उसने आत्मसाधना का मार्ग स्वीकार कर लिया ।
वासनावृत्तियाँ नष्ट हो जाएँ उसका नाम ही है सच्चा प्रेम । प्रेम आत्म-स्वरूप देखता है । प्रेम शुद्ध की ओर हो तभी वह आत्मकल्याण की ओर बढ़ता है, हमारा मन ममता से मुक्त हो जाता है । ममता का रंग उतर जाय तभी आत्मा बोझहीन बनती है । कर्म के बोझ को कम करने से आनंद का अनुभव होता है।
प्रेम के अंदर त्याग रहा हुआ है । राजीमती ने वैभव का त्याग किया और भरपूर युवावस्था में भगवान नेमिनाथ की राह पर चल पड़ी । आत्मसमर्पण में सच्चा त्याग है । प्रेम आत्मसमर्पण ही है । उसमें बदले की आकांक्षा होती ही नहीं है ।
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