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६९. समर्पण
किसी समय दो भाइयों ने अपने खेत का बँटवारा किया । बड़े भाई को एक भी पुत्र न था । छोटे भाई को चार पुत्र थे । बड़े भाई के मन में दया का वास था । उसने सोचा, “मेरे कोई संतान नहीं है, छोटे के चार हैं । क्यों न थोड़ा अनाज उसके खेत में डाल दूँ ?" छोटे भाई के मन में विचार आया मेरे तो चार पुत्र हैं, चारों कमायेंगे । लेकिन बड़े भाई के लिए उनकी वृद्धावस्था में कमानेवाला कोई नहीं है, इसलिए दस गठरियाँ उनके खेत में डाल दूँ । बाद में दोनों भाईयोंने साथ में बैठकर इन दस गठरियों का खुलासा किया । इससे दोनों के बीच प्रेम बहुत बढ़ गया और बाँटे हुए खेत फिर से एक हो गये ।
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त्याग और समर्पण से ही संसार में स्वर्ग का सुख मिलता है । जितना त्याग अधिक, उतना ही संसार अधिक मधुर बनता है ।
नेमिनाथ भगवान ने उच्च मार्ग अपनाया, उससे राजीमती भी उनके मार्ग पर चली । प्रेम के अन्दर ऐसा गुण है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की खातिर अपने स्वभाव को बदल देता है । प्रेम की उत्कृष्टता का प्रमाण यही है कि राजीमती के मन में नेमनाथ
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