________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
LAG
६६. खेती जैसे शरीर खुराक से टिकता है, वैसे ही आत्मा धर्म से टिकती है । दुनिया में करने जैसा क्या है और छोडने योग्य क्या है इसकी समझ धर्म से ही आती है । मनुष्य के अंतर रूपी धरती बिना जोते ही पड़ी है, उसमें धर्मरूपी मोती की खेती करनी है । वर्षा के आरंभ में खेती करें तो वर्षाकाल पूर्ण होते होते हमारा मन हराभरा खेत बन जायगा । हमारे अंतर को कूड़ा-कचरा डालने का स्थान नहीं, बल्कि सुवासित पुष्प जैसा बनाना है । महापुरुषों के ग्रंथ मोती के समान प्रेरणा दे जाते हैं । भावी समाज हमारी खेती पर ही खड़ा होनेवाला है।
किसान पहले जमीन को जोतकर नरम बनाता है, उसी तरह हमें आत्मा को मानवता से, करुणा से, दया से, वात्सल्य से कोमल बनाना है । हमें मनुष्य-मनुष्य के बीच सहायक बनना है, दुश्मन नहीं । चींटी, मधुमक्खी, दीमक आदि जंतु होते हुए भी एक दूसरे के सहायक बनते हैं ।
TAL
HCONS
TOS
९०
For Private And Personal Use Only