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ज्ञान से मोक्ष
जो दिखाई देता है, उसे क्या देखें ? जो नहीं दिखाई देता, वही देखने योग्य है; लेकिन उस अरूपी पदार्थ को ज्ञान चक्ष से ही देखा जा सकता है, चर्मचक्षुओं से नहीं । कौन खोलेगा ज्ञानचक्षु ? संयमी साधु या ज्ञानी गुरु !
अज्ञानतिमिरान्धानाम् ज्ञानाञ्जन-शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: ।
(अज्ञान के अन्धकार से अन्धों की आँख को ज्ञानरूपी अंजन शलाका से खोलने वाले गुरु को में नमन करता हूँ।)
जम्बकुमार के ज्ञानचक्ष सुधर्मा स्वामी क उपदेश से खुल गये । व अपनी नवोढाओं को सांसारिक सम्बधों की असारता समझाते हैं और जिनश्वर से सम्बन्ध जोड़ने की सलाह देते हैं, जो कभी नहीं टूटता, जिसमें वियोग की कोई सम्भावना नहीं है ।
चोरों का सरदार प्रभव चोरी करने आता है और इस उपदेश को जम्बूकुमार से सुनकर उसकी भी आँखें खुल जाती हैं ।
फलस्वरूप जम्बूकमार जब दीक्षा लेते हैं, तब पाँच सो चोर साथियों सहित प्रभव भी दीक्षित हो जाते है । गुरुदेव के सान्निध्य में श्रुतज्ञान प्राप्त करके संयम और तपस्या के बल पर प्रगति करते हुए वे आचार्य प्रभवस्वामी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं ।
गुरुदेव की कृपा से दृष्टि में ऐसी ही निर्मलता आ जाती है । कहावत
"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि !"
दुर्योधन से राजसभा में पूछा गया कि अच्छे आदमी कौन-कौन हैं तो बोला - "सिर्फ में ही अच्छा हू विपरीत युधिष्ठिर से पूछा गया कि बूरे आदमी कौन-कौन हैं तो बोले :- “सिर्फ में ही बरा हं !"
चंडकौशिक की दृष्टि में विष था और महावीर प्रभु की दृष्टि में क्षमा
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