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दखत हैं. रणको निर्भयता और सुखशान्ति स आकर्षित होत है. उनका प्राप्त होने वाले असाधारण सम्मान स प्रभावित होता है, उनक लिा संयम दुर्लभ नहीं रह जाता। वे संयमी जीवन को अंगीकार करके सहर्ष आत्मकल्याण के मार्ग पर चल पड़ते हैं और दुगरा का भी उग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं ।
एक बार महागजा कमारपाल ने आचार्य देवदार से कहा :- “आर मझे स्वर्णसद्धि का प्रयोग सिखा दें, जिससे में प्रजाजनी में स्त्रण बाट कर सब को सम्पन्न और सुरती बना सके !"
सरिजी बोल :- "दि स्वर्ण से ही लोग सना हो सकते तो तीर्थंकर देव भी सब को स्वर्ण का ही दान करते, उपदश का नहीं । तृष्णा ही द:ख का कारण है । राख का निवारा सन्तोष है - संयम मं हे !"
कमारपाल संयम का महत्व समझ गये । हम भी समझा कर संयम की आर रहना है ।
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