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अप्पणा सञ्चमेसेजा ।।
उत्तराध्ययन ६/२ (स्वयं ही सत्य का अन्वेषण करना चाहिये) शास्त्रकारों ने अपने अनुभव लिखे हैं । हम अपने अनुभवों से उनकी तुलनात्मक जाँच करें। इसके लिए हमे अपने चित्त को चिन्तन से जोड़ना होगा- मन को मनन से मथना होगा बुद्धि को बोध से सम्बद्ध करना होगा, तभी विचारकता विकसित होगी- आत्मा स्वभाव में निमग्न होगी और प्रतिपल शाश्वत सुख की अनुभूति हो सकेगी।
परमपूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में शास्त्रों का अध्ययन करने से जो कुछ में समझ पाया हूँ, उसे प्रवचनों के माध्यम से परोसने का में यथामति प्रयास करता रहता हूँ। यह ग्रन्थ उसी साधारण प्रयास का एक फल हैं । कैसा है ? इसका निर्णय पाठकों पर छोड़कर में अपनी वाणी को आज के लिए विराम देता हैं ।
आपका हितेषी, पद्मसागरसूरि
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