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अपनी ओरसे
जम्म दुक्खं जरा दुक्खं रोगाणि मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो जत्थ कीसन्ति जन्तुणो ।।
(जन्म का और बुढापे का दु:ख है - मृत्यु का और बीमारियों का दु:ख है । अरे यह संसार दु:ख से कितना भरा हुआ है ! जहाँ प्राणी कष्ट पा रहे हैं ।)
सांसारिक दु:खों से मुक्त कौन कर सकता है ? ज्ञान । मनीषियों का यह डिण्डिम घोष है :
क्रते ज्ञानान मुक्ति: ।।
(ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं हो सकती) __फिर भौतिक पदार्थो के ज्ञान को विद्या या विद्वत्ता नहीं कहते । वास्तविक विद्या वही है, जिससे मुक्ति मिले :
__ सा विद्या या विमुक्तये । ' (जो मुक्त करे वही विद्या हैं)
दु:खों से मुक्त होने की विद्या में वही निष्णात होता है, जिसे सत्य का ज्ञान हो । जगत्कल्याण ही सत्य है । हमें उसका अन्वेषण करना
है ।
जिनसे अपना और दूसरों का कल्याण हो- सब का भला हो, उन नीतियों- नियमों-सिद्धान्तों का अन्वेषण करना ही सत्यान्वेषण कहलाता
अब प्रश्न यह है कि सत्य का अन्वेषण कैसे किया जाय ? कौन करे यह कार्य ? इसका उत्तर प्रभु महावीर के इस प्रेरणा वचन में विद्यमान है :
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