SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसे लोगों क सहवास में व्यक्ति रहता है, वैसी ही बोली सीखता है। जो तांता संन्यासी के आश्रम में पलता है, वह शिष्ट भाषा बोलता है; किन्त जो तांता कसाई क बूचड़खाने में पलता है, वह बरी-बुरी गालियां बकता है । एक तोते न किसी राजा से कहा था : "अहं मुनीना वचनं शृणोमि गवाशनाना स शृणोति वाक्यम् । न चास्य दोषो न च मदुणो वा संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति ।।" । (मे मनियों के वचन रानता हूँ और वह कसाइयों क ! उसका कोई दोष का है और मरा काई गण नहीं है । है राजन ! गण -दोष संसर्ग से उत्पन्न होत है) अन्ले लोगों क. संसर्ग में रहने से अच्छे विचार सूझत हैं । विचारों के अनुसार वचन प्रकट होते हैं। बहुत गुस्सा आने पर भी गांधीजी अधिक स अधिक, “पागल" शब्द का ही प्रयोग कर पाते थे । सभाषा से उन्नति होती है और कभाषा से पतन । जिस जीभ से जगत् की आग शान्त हो सकती है. उसी से खून की नदियाँ भी बह सकती हैं; इस लिए हमेशा साचविचार कर ही बोलना चाहिये : "बोली बोल अमोल है बोल सके तो बोल । पहले भीतर तौलकर फिर बाहर को खोल ।।" इस विषय में “सोख्त;" नामक शायर ने कहा था : "आदत है हमें बोलने की तौल-तौल कर । है एक-एक लफ्ज बराबर वजन के साथ !" यह आदत उन्हीं सजनों में होती है, जो विवेक के छन्ने से विचारों को छान कर फिर बालते हैं। एक इंग्लिश विचारक ने सुझाव दिया है : “Run before you jump and ___think before you speak -" (कदने से पहल दौडो और बोलने से पहले सोचो) For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy