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करना ही चाहते थे कि अलीने कहा :- "इसे पीटिये मत; किन्तु प्यार से पूछिये कि क्या घर में उस के किसी कुटुम्बी की मृत्यु हुई है, क्या उसके सिर पर कोई कर्जा है । क्या उसे भरपेट भोजन हर रोज मिल जाता है ?"
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अरब ने बताया कि उसके घर में जवान बेटे की मृत्यु हुई है, कर्जा भी है और भरपेट भोजन भी उस नहीं मिल पाता ।
"यही कारण कि उसका मन अशान्त रहता है और वह गालियाँ देता है" । ऐसा कहते हुए अली ने तत्काल अपने घर से मँगवाकर उसे इतना धन दे दिया कि उससे कर्जा उत्तर जाय कुटुम्बियों के लिए महीने भर की भोजन की व्यवस्था हो जाय और व्यापार के लिए कुछ पूंजी भी
बच जाय ।
उसी दिन वह दुष्ट से शिष्ट बन गया | अली की तरह धन का सदुपयोग करने वाले धन्य हैं ।
पाँचवा साधन है- भाषा । यही पशुपक्षियों से मनुष्य को अलग करती है । अपने भावों को सूक्ष्मता से विस्तार के साथ प्रकट करने की क्षमता मनुष्य की भाषा में है । अपने शब्दों से मनुष्य दूसरों की निन्दा भी कर सकता है और प्रशंसा भी गालियों की बौछार भी कर सकता है और गुणगान भी कठोर शब्दों के प्रयोग से अपने दुश्मनों की संख्या भी बढा सकता है और कोमल मधुर शब्दों के द्वारा अधिक से अधिक दोस्त भी बना सकता है ।
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विवेकी सज्जन अपनी भाषा को हमेशा सदुपयोग करते हैं । वे अहितकर सत्य नहीं बोलते और हितकर असत्य भी बोलते हैं । वे जानते हैं कि प्रमुख लक्ष्य जनहित है । उनके सामने यह सूक्ति रहती है :
"सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्
न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।। "
( सच बोले, मीठा बोले, किन्तु कटु सत्य न बोले )
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