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साधनों का सदुपयोग
मनुष्य को पाँच उत्तम साधन प्राप्त हुए हैं :- बद्धि, काया, मन, मन और भाषा । इनक सदुपयोग पर ही दुर्लभ मानव भव की सफलता निर्भर हे ।
शरीर में मस्तिष्क का स्थान सब से ऊपर है; क्याकि उसका महत्व सब से अधिक है। मस्तिष्क की शक्ति को बद्धि कहते हैं। वहीं कार्य- अकार्य का निर्णय करती हैं । उसी के आदेश से शरीर की समस्त गतिविधियों का संचालन होता है । धारणा या स्मृति भी उसी का कार्य है । हम महापुरुषों के विचारों को समझने के लिए शास्त्रों का अध्ययन कर और अपने लिए कर्त्तव्य का निर्णय करें- अपने जीवन का लक्ष्य निति कर तो यही हमारी बुद्धि का सदुपयोग होगा । प्रभु महावीर ने कहा था :
"पण्णा समिक्खए धम्म ।।" (बुद्धि, धर्म की समीक्षा कर)
धर्म का अर्थ है- सदाचार का कर्तव्य । बुद्धि ही धर्म का निर्णय कर सकती है । वही हमें रूढ़ियों और अन्धविश्वासों से बचा सकती है । वहीं भूले-भटके लोगों का ठीक-ठीक मार्ग दर्शन कर सकती है । वह मानसिक दुर्बलताओं को नष्ट करने का साहस उत्पन्न कर सकता है। वही संकटों में सुरक्षा का उपाय सुझा सकती है ।
भवन की सातवीं मंजिल के एक कमर में खिडकी क निकर की पर बैठे युवक को एक दुष्ट ने पिस्तौल दिखाते हुए आज्ञा दी - “यहाँ से नीचे कूद पड़ो; अन्यथा गोली मार दूंगा !"
संकट की इस घड़ी में यदि युवक व्याकल हो जाता तो न मरना पड़ता; परन्त उसने बद्धि का उपयोग किया । फल स्वरूप उसे एक उपाय सूझ गया ।
मूस्कुराते हुए वह बोला :- “अरे भाई ! ऊपर से नीचे लो सभी कट लते हैं । यह कोई बड़ी बात नहीं है । में तो नीचे से ऊपर छलकर आ सकता हूँ- में हाई जम्प में एक्सपर्ट हूँ।" दुष्ट ने कहा :- “अच्छा ! तो एसा ही कर क दिखा दो ।"
यह सुनते ही दुष्ट की खिड़की के निकट खड़ा करके यवक कमरे से बाहर निकल आया । दुष्ट ने सोचा कि वह उछलने की कला दिवान के लिए नीचे जा रहा है; किन्तु युवक ने बाहर निकलते ही दरवाजा बन्द
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