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पत्नी :- “आपने पनीर के विषयमें दो अलग-अलग बातें कही हैं । एक से वह अच्छा मालूम होता है और दूसरी से बुरा । दोनों में से कौन सी बात मानी जाय ?"
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मुस्कराते हुए मुल्लाजी बोले :- "बातें दोनें सच्ची है"; परन्तु मानना अपनी परिस्थिति पर निर्भर है । यदि मर में पनीर हो तो पहली बात मान लो और न हो तो दूसरी । "
व्यवहार में स्याद्वाद की कदम कदम पर जरूर होती है । यही कारण है कि आचार्यो ने अनेकान्त को वन्दन करते हुए कहा है :
जेण विणा लोगस्सवि
ववहारो सव्वा न निव्वडई
तस्स भुवणेक्कगुरुणो णमो अणेगतवायस्स ।।
(जिसके बिना लोक का व्यवहार भी बिल्कुल चल नहीं सकता । संसार के एक मात्र गुरु उस अनेकान्तवाद को नमस्फार हो)
एक ही व्यक्ति किसी का पति है, किसी का पिता, किसी का पुत्र और किसी का भाई ! क्या विरोध है इसमें ? पत्थर छोटा होता है या बडा ? इस प्रश्न का उत्तर बिना अनेकान्त के दिया ही नहीं जा सकता। कहना पड़ेगा कि वह कंकर से बड़ा होता है और चट्टान से छोटा । इस प्रकार एक ही पत्थर " छोटा" भी है और “बड़" भी ! जहाँ विभिन्नता में एकता के दर्शन होते हैं अनेकान्त हो जाता, वही अनेकान्त है । इसी सिद्धान्त के द्वारा महाश्रमण महावीर ने तीन सौ तिरसठ (३६३) मतों का समन्वय किया था
'जन' और 'जेन' में केवल दो मात्राओं का अन्तर है। एक मात्रा विचार की हे और दूसरी आचार की । विचारों में जिसके अनेकान्त हो और आचार में अहिंसा, वही व्यक्ति "जैन" कहलाता है । विचार और आचार की शुद्धि के द्वारा कोई भी जन जैन बन सकता है। दो पंखों से उड़ने वाले पक्षियों में कोई भेदभाव नहीं होता, उसी प्रकार विचार और आचार के दो पंख जुड जाने पर बिना किसी जातिभेद के कोई भी जन 'जैन' बनकर संसाररूपी जंगल में उड़ानें भर सकता है ।
अधिक कीचड़ और कम पानी जहाँ हो, वहाँ हाथी फँस जाता है; किन्तु इससे विपरीत कम कीचड़ और अधिक पानी हो, वहाँ हाथी पार निकल जाता है । उसी प्रकार संसार में वही प्राणी भटकता है, जिसक
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