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मयणासुन्दरी
उमयिनी नरेश प्रजापाल ने भरी सभा में अपनी दोनों पत्रियों से एक प्रश्न किया :- “सुख पिता से मिलता है या पुण्य से ?"
एक पुत्री सुरसुन्दरी ने कहा :- "पिता से" दूसरी मैनासुन्दरी ने कहा .- “पण्य से ।" प्रसन्न पिता ने सुरसुन्दरी का विवाह शंखपुरनरश अरिदमन से कर दिया; किन्तु मयणासन्दरी के उत्तर से अप्रसन्न होकर उसका विवाह उबर गणा नामक एक कोढी से किया । ।
नवपद की विधिपूर्वक आराधना से कोढ मिटने के बाद धर्मस्थान से राजमहल की ओर जाते समय माँ कमलप्रभा क दर्शन हए । श्रीपाल ने चरण छकर कहा :- "मयणा ! यह तुम्हारी सास है । प्रणाम करो ।"
मयणा प्रणाम करके बहुत खुश हुई। तीनों राजमहल में गये । प्रजापाल ने कमलप्रभा का स्वागत किया और पूछने पर अपना पिछला वृत्तान्त इस प्रकार सुनाया :- “हे राजन् ! में चम्पानरेश सिंहरथ की रानी हूँ। श्रीपाल मेरा पुत्रा है । जब यह पाँच वर्ष का था तब इसक पिता चल बसे । राज्य हड़पने के लिए इसके काका अजितसेन इसे जान से मार डालना चाहते है- एसी भनक पड़ते ही मैं इसके प्राण बचाने क लिए इसे लेकर जंगल में भाग गई । वहाँ सात सौ कोढियों के एक दल को देखा । श्रीपाल को सुरक्षा के लिए मैंने दल के साथ भेज दिया और में कोढ के इलाज की दवा हँढन चल पड़ी । वर्षों बाद आज अकस्मात् इसे अपनी सह धमिणी क साथ देखा और इन दोनों के अनुरोध से राजमहल में चली आई।
राजा ने राजमहल के एक सुन्दर कक्ष में तीनों को ठहराया । वे सानन्द रहने लगे । एक दिन श्रीपाल ने नगर में पर्यटन करते समय किसी प्रजाजन को यह कहते हुए सुना कि ये प्रजापाल के जमाई हैं । यह बात चुभ गई; क्यों कि नीतिकारों ने कहा है : ..
उत्तमाः स्वगुणैः ख्याताः, मध्यमास्तु पितुर्गुणैः । अधमाः पातुलैः ख्याताः,
श्वशुरैरधमाधमाः || (उत्तम अपने गुणों से विख्यात होते है; मध्यम पिता के गुणों से, नीच मामा के गणों से और नीचतम व्यक्ति ससुर के नाम से जाने जाते हैं)
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