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आपक मन में जो शंका उठ रही है, उसका समाधान तभी होगा, जब आप इस आगन्तुक देव के पूर्वभव का वृत्तान्त सन लेंगे । यही देव पूर्वभव में इस सती पतिव्रता महिला का पति युगवाह था । मालव प्रान्त क सुदर्शन नगर के राजा मणिरथ का यह छोटा भाई था । मणिरथ इस सती के सौन्दर्य पर आसक्त हो गया था | युगबाहु को मिलन में बाधक मान कर मणिरथ ने एक दिन विषबुझी तलवार से उस पर प्रहार कर दिया । युगबाहु मूर्छित होकर जमीन पर लूढक गया । मणिरथ घबराकर वहाँ से भाग निकला । युगबाहु क अंगरक्षकों ने उसका पीछा किया; परन्तु वह पकड़ ड़ा न जा सका । मदनरखा ने दखा कि यगबाह क प्राण अब कछ ही मिनिटों के मेहमान हैं, तब इसके मस्तक को गोद में रख कर उचित उपचार द्वारा पहले मूर्छा दूर की और फिर गति सुधारने क लिए धार्मिक उपदेश दिया - अनित्य भावना, अशरण भावना एकत्व भावना की धारा बहा कर पतिदेव को भावना को निर्मल बना दिया । फलस्वरूप देह छोड़ने के बाद इसे देवगति में ऐसा दिव्यरूप और अटूट वैभव प्राप्त हुआ । यदि मणिरथ के प्रति प्रतीकार की भावना से क्रोध की अवस्था में इसका प्राणान्त होता तो यह अवश्य नरक में जाता ! देवगति में उत्पन्न होते ही इसने जान लिया कि नरक से बचाकर, स्वर्ग में भजनेवाली परमापकारीणी, मदनरेखा इस समय यहाँ है; अत: प्रत्युपकार के रूप में कछ सेवा सहायता करनी चाहिये । अपनी हार्दिक कृतज्ञता का परिचय देने क ही लिए इस देव ने पहले मदनरेखा को वन्दन किया था । यह इस इस समय पत्नी नहीं, किन्तु धर्मोपदेशिका गुरुणी मानता है ।"
फिर श्रोताओं में से एक ने पूछा :- "मणिरथ का क्या हाल हुआ ?"
महामुनि :- मणिरथ पकड़े जाने के भय से जंगल में पैदल ही भागा जा रहा था। धीरे-धीरे अँधेरा हआ । अँधरे में एक काले साँप पर उसका पाँव पड़ गया । उसने मणिरथ के पाँव में डस लिया । इसते ही उसके सारे शरीर में जहर फैल गया । मणिरथ का जीव मर कर पांचवीं नरक में उत्पन्न हुआ है और अपने पापों का कफल भोग रहा है ।"
फिर एक अन्य श्रोता ने पूछा :- “जब मणिरथ और यगवाह दोनों पर गये- तब सुदर्शन नगर का इस समय राजा कौन है ?"
मणिचूड :- “युगबाहु का बडा पुत्र चन्द्रयश। वही इस समय राजसिंहासन पर आसीन होकर कुशलतापूर्वक उस नगर की प्रजा का पालन कर रहा
एक जिज्ञास ने पूछा :- “महासती मदनरेखा को जंगल में किसने भेजा ?" ११०
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