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अतीत की उन भली-बुरी घटनाओं से वर्तमान भिन्न नहीं हो सकता. आपका वर्तमान अतीत की सहनशीलता पर ही निर्मित हुआ है. अतीत के संघर्ष ने ही वस्तुतः आपके वर्तमान को स्वर्णिम बनाया है.
उन्नति के शिखर
किसी ने कहा भी है :
"संघर्षों में जो व्यंग्य-बाण सहते हैं, आजीवन पथ पर दृढ़ता से रहते हैं; जब फलितार्थ होता है अथक परिश्रम, तो वे ही विरोधी बुध्दिमान कहते हैं."
मुनि पद्मसागरजी के जीवन पर यह मुक्तक ठीकठीक चरितार्थ होता है. यह संसार शक्ति का पूजक है. शक्तिहीन की यहाँ कोई गिनती नहीं होती. उदीयमान सूर्य को हर-कोई नमस्कार करता है. कहीं आगे बढ़ जाने के बाद कुछ विरोधियों ने मुनि पद्मसागरजी को बुध्दिमान और महान कहा कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनके हालात देखकर अपार दया आती है. वे बेचारे खुद की प्रगति के ध्येय को एक ओर छोड़कर आज तक मात्र पद्मसागरजी के प्रति विरोध और ईर्ष्या की ज्वाला में जलते रहे हैं. जो लोग चलने में असमर्थ होते हैं, वे राह के किनारे खड़े रहकर अन्य राहगीरों पर पत्थर मारा करते हैं. वस्तुतः यह उन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों का मुर्खतापूर्ण कृत्य होता है. औरों की खुशियों को न देख पाना जगत
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