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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहन की साधना महानता यूँ ही उपलब्ध नहीं हो जाती. उसके लिए तो हर संघर्ष को झेलना पड़ता है, कठिनाइयों में भी दृढ़ रहना पड़ता है. मुनि पद्मसागरजी को भी अपने प्रारम्भिक श्रमण-जीवन में एक नहीं, अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, किन्तु हर संघर्ष में आप अडिग रहे. दुःखों को क्षणिक समझकर जीने की आपकी मानसिकता गजब की रही. एक वे भी दिन थे जब बिना किसी के सहारे आपको जीना पड़ा, विचरण करना पड़ा, कभी गहरी बीमारियों की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से आप गुज़रे. कभी रक्तवमन की व्याधि के दौरान भी पदयात्राएँ करनी पड़ी. अपने प्रथम व द्वितीय शिष्य के दीक्षा-प्रसंग को लेकर भी आपको काफी परेशान होना पड़ा. उन दिनों सड़कों को छोडकर आपको ढाणियों और खेतों के बीच की पगडंडियों में विहार करने पड़े. कहा जाता है कि मारने वाले से बचाने वाले के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. मुनि पद्मसागरजी का प्रारब्ध भी अतीव प्रबल था. नागौर व पाली के कुछ श्रध्दालु सज्जनों ने आपको तन-मन-धन से सुन्दर सहयोग दिया. निःसंदेह आज आचार्य प्रवर जीवन की महानतम ऊँचाइयों को छू चुके हैं, हजारोंलाखों के पूजनीय हैं परन्तु वे दिन भुलाए नहीं जा सकते. २२ For Private And Personal Use Only
SR No.008728
Book TitlePadmasagarsuriji Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalsagar
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1991
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size2 MB
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