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हजारो यहाँ आये और गये, जिनका आज नाम निशान और अस्तित्व भी नहीं हैं ।
सिकंदर के जैसा जगत् योद्धा इस दुनिया से चला गया । सिकंदर के कबरस्थान पर सिकंदर की माता आयी और पूकार ने लगी कि मेरा सिकंदर कहाँ हैं ? वहाँ एक फकीर बैठा हुआ था । उसने माता से कहा—-, " हे पगली ! तूं क्या खोजती है ? कई सिकंदर इस भूमि में गाडे गये । अब तू तेरे सिकंदर को कहाँ खोज पाओगी । अगर तूं ऐसे ही ढूंढती रहोगी तो तुझे ही यहाँ आना पडेगा ।
पूण्य बल से सत्ता, संपत्ति मिल गयी लेकिन अगर इस की प्राप्ति में समभाव नहीं आया तो जीवन का पतन होगा और वह दुर्गतीका कारण बनेगा ।
इसीलिए एक कविने कहा है
उछल लो कूद लो जब तक है जोर गलियों में ।
याद रखना, इस तन की उहेगी खाख गलियों में || द्रोणाचार्य जब चल बसे तब उन्होंने मरने से पहले पांडवो को अपनी अंतिम इच्छा कह दी । " मेरा अग्निसंस्कार वहाँ करो कि जहाँ पहले कोई भी अग्निसंस्कार नहीं हुआ हो । पांडव तो जगह की खोज में निकले । जहां जहाँ उन्होंने अग्निसंस्कार के लिए जगह निश्चित की वहाँ आकाशवाणी हो गयी कि यहां पहले
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