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चल जाओ। "बालक के जाने के रास्ते पर ही सम्राट की बंदगी चल रही थी । सुदर गालीचा लगाया हुआ था । बालक 'माँ' 'माँ' कर के माँ की खोज में दौड रहा था । उस गालीचा के ऊपर से बालक दौडता चला गया । उसे मालुम नहीं पड़ा कि अकबर नमाज पढ़ रहा रहा है। बालक माँ तक जा पहूँचा । लेकिन इधर सम्राट को बहुत गुस्सा आया । बालक को बुलाया गया । सम्राट ने पूछा “क्यों लडके इस गालीचा को गंदा करके मेरे सामने से तू चला गया, तुमने देखा नहीं कि मैं नमाज पढ रहा था ?" लडके ने जवाब दिया, "सम्राट मुझे माफ करना मैं, माँ से बिछड गया था । और माँ की खोज में मैं दौडता था । मुझे सिर्फ माँ के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया । मैं तो सब भूल गया था। मैं माँ की खोज में जब निकला तब मैं सब कुछ भूल गया था । मुझे मेरी माँ मिल गयी। आप अल्ला की खोज में निकले हो लेकिन आप तो सब कुछ जानते हो ।”
चित्त जब एकाग्र नहीं बनेगा, तब तक खोज अपूर्ण रहेगी। जब जगत् को भूल जाओगे, तब जात को पाओगे । जहाँ स्थिरता है, वहां मग्नता है, वहाँ गंभीरता है।
आत्मा को ध्यान से स्थिर बना दिया जाय तो वह मंगल बनेगी । योग मोक्ष का साधन है ।
एक उर्दू शायरने कहा, "अ दिल तूं क्या हर्ष करता है ?
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