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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ हम हमेशा हिंसा करते है । असत्य बोलते है । चोरी करते है । अयोग्य परिग्रह करते है । हम तो महान् फौजदारी गुन्हेगार है । अगर हम इस पाप का, किये हुये गुन्हाओं का, पश्चात्ताप पूर्वक, अंतर हृदय से इकरार करेंगे, तो जीवन में पवित्रता का झरना प्रगट होगा । आत्मा को राग से मुक्त बनाए तो वीतरागता नजदीक है । "अरिहंते शरणं प्रवज्जामि । " अरिहंत की शरण जाओ । अरिहंत के आदर्शों को प्रेम से स्वीकार करो । स्वीकार के बाद अर्पण भावना जागृत होगी । स्व-अर्पण के बाद सिद्धि निश्चित आएगी । जागृति के बाद पैसाजो जहर है - वह अमृत बनेगा | बडे मुल्ला ने एक दफे कोई गुन्हा किया । जज्ज के सामने उस को खड़ा कर दिया । जज्ज ने उससे पूछा, "ए मुल्ला ! तुम तो बुजूर्ग हो। इतनी बडी उमर में आपने ऐसा बूरा काम क्यों किया ?" मुल्ला कहता है, "साहब, आप के लिए । " जज्ञ्ज तो विचार में पड गये और मुल्ला से कहने लगे, 'कैसी बात करते हो ? गुन्हा कर लिया और कहते हो कि मेरे लिए । For Private And Personal Use Only
SR No.008727
Book TitlePadmaparag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherShantilal Mohanlal Shah
Publication Year1979
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
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