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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनंत उपकारी महावीर भगवंत ने स्व में स्व को किस प्रकार खोज लेना इसका एक अपूर्व परिचय अपने प्रवचन के माध्यम से दिया। उन्होंने अनंत कष्ट सहन कर के, बहुत परिश्रमसे, तप से, चिंतन से जो भी प्राप्त किया उसको सहज भाव से उपकार भावना से सभी जीवों के प्रति उनकी रही हुयी करुण भावना से, सर्व जगत् को दे दिया। उन के मन में एकही भावना थी कि मैंने जो भी प्राप्त किया है उसे सभी आत्माों प्राप्त करें, और उस अनंत सुखमय निरंजन, निराकार, परमानंद को प्राप्त करें। महावीर ने कोई भी मोनोपली या गुप्तता नहीं रखी। परमात्मा के एक एक शब्द में अपूर्व वात्सल्य और करुणा छीपि हुयी है । महावीर को संप्रदाय स्थापन करना नहीं था। अनुयायी बनाने को भावना भी उन के मन में नहीं थी। महावीर के मन में एकही भावना थी किं जगत् की सभी आत्माएँ पूर्ण बने । आत्मा को परमात्मा बनाने के लिओ जीवन की साधना आवश्यक है । साधना आशीर्वाद के समान है । आत्मा स्वयं कर्ता है और भोक्ता है । सुख और दुःख मन For Private And Personal Use Only
SR No.008727
Book TitlePadmaparag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherShantilal Mohanlal Shah
Publication Year1979
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
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