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१. अचौर्य
प्रामाणिक सज्जनो!
धर्म का प्रारम्भिक रूप प्रामाणिकता में दिखाई देता है। उन साम्यवादी देशों में, जहाँ धर्म को अफीम माना जाता है, वहाँ भी भरपूर प्रामाणिकता (ईमानदारी) पाई जाती है। वे लोग जानते हैं कि व्यापार में भी सफलता का आधार प्रामाणिकता है; इस लिये वे भी जीवनभर प्रामाणिक बने रहते हैं अर्थात् धर्म से घृणा करके भी प्रमाणिक बने रहते है!
__हमारे भारत में क्या हाल है ? जहाँतक प्रामाणिकता का प्रश्न है, उसे दिया लेकर ढूँढना पड़ेगा! आये दिन हम समाचारपत्रों में पढ़ते रहते हैं कि- कहीं बैंक लूटी गई, कहीं ट्रेन और कहीं बस! जो लोग ऐसे प्रकट लुटेरे नहीं है, उनमें भी रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, मिलावट, बेईमानी, आदि अप्रामाणिकता के रूप में पाये जाते है। ईमानदार आदमी हजारों-लाखों में मुश्किल से दो-चार मिलते है। इससे सिद्ध होता हैं कि हम धार्मिकता को अपनाना नहीं चाहते, धार्मिक बनना नहीं चाहतें !
बेईमानी धन के लिए की जाती हैं; परन्तु जो धन बेईमानी से प्राप्त होता हैं वह टिकाऊ नहीं होता। हिन्दी में कहावत है कि-चोरी का धन मोरी में जाता हैं । इंग्लिश में भी इसीसे मिलती-जुलती कहावत है : –
Ill got ill spent संस्कृत में भी कहा है :
अन्यायोपार्जित्तं वित्तम् दश वर्षाणि तिष्ठति ।
प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं हि विनश्यति ।। . [अन्याय (बेईमानी) से अर्जित (कमाया गया) धन दस वर्ष तक रहता है । ग्यारहवें वर्ष वह मूलसहित नष्ट हो जाता हैं ]
मधुमक्खी थोड़ा-थोड़ा रस फूलों से चुराती हैं; परन्तु छत्ते का सारा शहद कोई दूसरा ही ले जाता है। गुजराती में कहावत हैं :
"मियाँ चोरे मूठे । अल्ला चोरे उँटे" ॥ बेईमानी से थोड़ा-थोड़ा धन संग्रह करने वाले के घर में डाका पड़ जाता हैं। स्वामी सत्यभक्त कहते हैं :
चोरी करता चोर, पर चोरी सहे न चोर । चोरों के घर चोर हों चोर मचायें शोर ।
-सत्येश्वरगीता
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