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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम, ते मूर्खतरा लोके येषां धनमस्ति नास्ति च त्यागः। केवलमर्जन्रक्षण वियोगदुःखान्यनुभवन्ति।।
-सुभाषितावलिः [जिन के पास धन है, फिर भी उसका जो त्याग नहीं करते, वे लोग इस दुनियामें अधिक मूर्ख हैं; क्योंकि वे केवल धन के अर्जन, रक्षण और वियोग (चुरा लिये जाने पर होने वाले विरह) के दुःखोंका अनुभव करते हैं।]
पृथ्वी भी ऐसे ही लोगों से भार का अनुभव करती है-ऐसा श्री हर्ष कवि का कथन
याचमान-जन-मानसवृत्तेः पूरणाय बत जन्म न यस्य। तने भूमिरतिभारवतीयम् न द्रुमैर्न गिरिभिर्न समुद्रैः।।
-नैषधीय चरितम् याचक की मनःकामना पूर्ण करने में जिसका जीवन नहीं लगता, उसी से यह भूमि भारवती है- न पेड़ोंसे न पहाड़ों से और न समुद्रों से!) उदार सज्जन समझते हैं कि दूसरों की भलाई में ही अपनी भलाई है :
The best way to do good to ourselves, is to do it to others; the right way to
gather is to scatter. (आत्मकल्याणं का सबसे अच्छा तरीका है- दूसरोंका कल्याण करना; एकत्र करनेका ठीक उपाय है- बिखेरना!)
भीनमालनगरी में उत्पन्न हुए महाकवि माघ, कवित्वसे भी अधिक अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी पत्नीका नाम था लक्ष्मी। जैसा कि कहा है :
तस्याभूद् गेहिनी लक्ष्मीर्लक्ष्मीर्लमीपतेरिव।। [लक्ष्मीपति (विष्णु)की लक्ष्मी के समान उन (माघ कवि) की गृहिणी का नाम लक्ष्मी था।]
उदारता में वह भी अपने पतिदेव से पीछे नहीं रहती थी।
एक दिन की बात है। किसी याचक ने उनके निवास पर आकर प्रार्थना की :- ''महोदय! मुझे अपनी कन्या का विवाह करना है। यदि आप कुछ सहायता कर देंगे तो बड़ी कृपा होगी। बहुत दूर से मैं आपका नाम सुनकर आया हूँ।"
__महाकवि के पास उस दिन एक भी स्वर्णमुद्रा नहीं थी; परन्तु याचक को निराश करना उनकी प्रकृति के विरूद्ध था। वे उटे । घरमें गये। पत्नी पलंगपर लेटी थी। उसे निद्रा आ रही
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