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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri - मोक्ष मार्ग में बीस कदम - देहि देहीति जल्पन्ति त्यागिनोऽव्यर्थिनोऽपिव। आलोकयन्ति रभसा दस्ति नास्तीति न क्वचित् -शाङ्गश्वरपद्धतिः [“दे दो, दे दो' ऐसा त्यागी और याचक दोनों कहते हैं; परन्तु हड़बड़ी में यह नहीं देखते कि (जिस चीज को देने के लिए कहा जा रहा है, वह है भी या नहीं!] याचक तो यह सोचता ही नहीं कि जो वस्तु मैं माँग रहा हूँ, वह दाता के पास मौजूद है या नहीं; परन्तु दाता भी इस बातका विचार नहीं करता। इस प्रकार दोनों समान सिद्ध हुए। त्यागी की उदारता का कारण एक कवि के शब्दों में इस प्रकार है : उत्पादिता स्वयमियं यदि तत्तनूजा तातेन वा यदि तदा भगिनी खलु श्रीः । ययन्य संगमवती च तदा परस्त्री तत्त्यागबद्धमनसः सुधियो भवन्ति। -भर्तृहरिः (यदि लक्ष्मीका स्वयं हमने उत्पादन किया है तो वह हमारी पुत्री है। यदि पिताजीने उसका उत्पादन किया है तो वह बहिन है। यदि लक्ष्मी दूसरों की है तो वह परस्त्री है; इसलिए बुद्धिमान् व्यक्ति हमेशा उसका त्याग करने की बात सोचते रहते हैं।) उदार व्यक्ति दूसरों को माँगनेका भी अवसर नहीं देते। किसी तरह आवश्यकता का पता चलते ही सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं : आकारमात्रविज्ञान सम्पादितमनोरथाः। ते धन्या ये न शृण्वन्ति दीनाः प्रणयिनां गिरः।। -सुभाषितावलिः।। [आकार मात्र (चेहरे) से (याचक या अर्थी की) आवश्यकताको जानकर उसका मनोरथ पूर्ण करनेवाले वे लोग धन्य हैं, जो प्रेमियों के कातर वचन नहीं सुनते।] त्याग और भोग करनेवाला ही वास्तव में धनवान् है; अन्यथा : त्याग भोगविहीनेन, धनेन धनिनो यदि। भवासः किं न तेनैव, धनेन घनिनो वयम्।। -शाङ्गधरपद्धतिः [त्याग और भोग से रहित धन से यदि कोई धनवान है तो उसी धन से हम धनवान क्यों नहीं है ? (अवश्य हैं।)] जो त्याग और भोगसे दूर रहता है- बचता है, वह कृपण (कंजूस) कहलाता है । एक विने उसके व्यवहार पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है : For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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