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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम । हुआ तो एक जैन साधु के कहने से माता ने उनसे तीन प्रतिज्ञाएँ करवा ली :- (क) शराब नहीं पिऊँगा (ख) मांस नहीं खाऊँगा और (ग) परस्त्रीगमन नहीं करूँगा। आत्मकथामें गाँधीजी ने यह स्वीकार किया है कि इन तीन नियमों के प्रभाव से ही मैं अहिंसक बना । अहिंसा के विषय में महात्मा गाँधी के महत्त्वपूर्ण विचार ये है :
* धर्म के निचोड़का दूसरा नाम ही अहिंसा है। * अहिंसा का अर्थ है- ईश्वर पर भरोसा।
* जैसे हिंसा की तालीम में मरना सीखना जरूरी होता है, वैसे ही अहिंसा की तालीम में मरना सीखना पड़ता है।
* मेरी अहिंसा का मतलब है- सबसे प्रेम करना। * उस जीवन को नष्ट करनेका हमें कोई अधिकार नहीं है, जिसे हम बना नहीं सकते।
इन अनुभवपूर्ण उद्गारोंसे हमें अहिंसा के स्वरूप को समझने में कोई कठिनाई नहीं रहेगी। अहिंसा की भावना से किये गये कार्य से तिर्यञ्च भी किसी प्रकार प्रभावित होते हैं: इसका प्रत्यक्ष उदाहरण किसी दैनिक पत्र में छपा था :
दाहोद से रतलाम की ओर जाने वाली लाईन पर आलावाड नामक एक स्टेशन आता है। वहाँ सिग्नल मैन सिग्नल देने के लिए निकला । आने वाली गाडी पूरे वेग पर थी। उसी लाइन पर एक मालगाड़ी भी खड़ी थी। यदि आने वाली गाड़ी की लाइन न बदली जाय तो उससे मालगाड़ी की भिडंत हो सकती थी। इस भयंकर दुर्घटना से हजारों स्त्री पुरुषों और बच्चों के प्राण जाने की सम्भावना थी।
सिग्नलमैन यथासमय यथास्थल अपना काम करने के लिये पहुँचा; परन्तु सिग्नल देने के लिये जहाँ उसे पाँव रखना था, वहाँ एक कोबरा नाग फन फैलाकर बैठा था। अब क्या किया जाय? इतना समय नहीं था कि किसी उपाय से कोबरे को हटाने के बाद काम किया जाय। थोड़ा-सा विलम्ब हजारों की मृत्युका कारण बन सकता था। उसने फौरन विचार करके निर्णय ले लिया कि मेरे मरने से हजारोंकी जान बच जाय इससे बढ़कर परोपकार का अवसर
और क्या होगा? उसने नाग के फन पर पाँव रखकर सिग्नल ऑन कर दिया। इससे पटरी बदल गई। गाड़ी दूसरी पटरी पर होकर निकल गई- सब यात्री बच गये।
उधर अहिंसक भावना से रखे गये पाँव पर नागने भी दंश नहीं दिया। बिना किसी उपद्रव के वह पाँव के आघात को सहकर चुपचाप दूर चला गया। इस प्रकार अहिंसा के पुण्य का उस आदमी को तत्काल फल यह मिला कि वह खुद भी बच गया और विभिन्न दैनिक पत्रों में उसकी प्रशंसा छपी-नाम हुआ- प्रसिद्धि मिली, सो अलग।
अहिंसा से हिंसा पर भी विजय पाई जा सकती है :
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