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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •अनासक्ति. सङ्ग एव मतः सूत्रे, निःशेषानर्थमन्दिरम् ॥ (सूत्रकारोंने संग (आसक्ति) को समस्त अनिष्टों का घर माना है।) जो व्यक्ति अपने परिवार के प्रति आसक्त होते हैं, उनकी कैसी दुर्दशा होती है ? इसका वर्णन करते हुए एक कविने कहा है : पुत्रदाराकुटुम्बेषु सक्ताः सीदन्ति जन्तवः । सरः पङ्कार्णवे मग्नाः जीर्णाः वनगजा इव ।। -पद्मपुराणम् (पुत्र, पत्नी आदि परिवार में आसक्त प्राणी उसी प्रकार कष्ट उठाते रहते हैं, जिस प्रकार तालाब के गहरे कीचड़ में फंसे हुए पुराने (बूढे) जंगली हाथी) यदि गहराई से विचार किया जाय तो पता चला जायगा कि- धन से अधिक मूल्य वस्तुओंका है; क्योंकि धन देकर हम वस्तुएँ खरीदते हैं। वस्तुओंसे अधिक महत्त्व शरीरका है और शरीर से अधिक महत्त्वपूर्ण आत्मा का है। एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ : निपाणी से एक आदमी धन कमाने के लिए बम्बई गया। वहाँ बुद्धिमत्ता और श्रम के सहयोग से उसने लाखों रुपये कमाये । घरका बँगला हो गया। कार आ गई। आराम से जीवन गुजरने लगा; परन्तु एक दिन वह आदमी बीमार पड़ गया। डॉक्टरोंने कहा – “आपको ब्रेनटयूमर हो गया है। इसका ऑपरेशन लन्दन में होता है। शीघ्र जाकर इलाज कराइये; अन्यथा मृत्युका खतरा है।'' आदमी व्याकुल हो गया। उसने सोचा कि- ऑपरेशन के लिए लन्दन जाने पर बैंक बेलेन्स खत्म हो जायगा, लोन लेना पड़ेगा, बँगला भी गीरवी रखना पड़ेगा - सब कुछ करूँगा; क्योंकि शरीरकी तो किसी भी तरह रक्षा करनी ही है; क्यों कि यदि शरीर बच गया तो बुद्धिमत्ता और श्रम से पुनः पूर्ववत् धन कमा सकूँगा। __ वह लन्दन गया, इलाज कराया, स्वस्थ हुआ, लौट आया; परन्तु कुछ वर्षों बाद जीवन का अन्तिम दिवस आ पहुँचा । शरीर से जीव निकल गया। परिवार वालों ने बहुमूल्य अलंकार उतारकर उस आदमी के शरीर को जला दिया। उसकी आत्मा के साथ धन नहीं गया। उसके द्वारा किये गये पुण्य--पाप ही साथ गये। इससे सिद्ध होता है कि- धन से शरीरका और शरीर से आत्मा का अधिक मूल्य है। यदि शरीरके लिए धन की आसक्ति छोड़ी जा सकती है तो आत्मा के लिए क्यों नहीं छोड़ी जा सकती? बिहार की बात है। मनोर ग्राम में मैं ठहरा था। रात को जोरदार बरसात हुई। सामने एक आदिवासी की कुटिया थी। वह बुरी तरह भीग गई थी। सुबह खिचड़ी पकाने के लिए १३ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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