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१९. विवेक
विवेकियो!
चिन्तन का सम्बन्ध मन से है और विवेक का सम्बन्ध बुद्धि से है । विवेक की व्याख्या की गई है :
हेयोपादेयज्ञानं विवेकः॥ [छोडने योग्य कया है और ग्रहण करने योग्य क्या है ? इस ज्ञान को विवेक कहते हैं] विवेक की आँख से कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का स्पष्ट भेद दिखाई देता है :
एको हि चक्षुरमलः सहजो विवेकः॥ [विवेक ही एक मात्र सहज निर्मल आँख है] विवेक ही वास्तविक गुरू है :
विवेको गुरुसर्वम् कृत्याकृत्यं प्रकाशयेत्।। [गुरु के समान विवेक सब प्रकार के कृत्य और अकृत्य को प्रकाशित कर देता है ]
शास्त्रों से लाभ वही उठा सकता है, जो विवेकी हो। स्वामी सत्यभकत ने विवेक की व्याख्या इन शब्दों में की है :
क्या अच्छा क्या है बुरा किस से जग-कल्याण? सच्ची समझ विवेक यह सब शास्त्रों की जान।।
__-सत्येश्वरगीता भला क्या है ? बुग क्या है ? दुनिया का किन-किन सिद्धान्तों से कल्याण हो सकता है ? इस बात की वास्तविक समझ ही विवेक है, जो सब शास्त्रों की जान (प्राण) है।
इस समझ में अहंकार और मोह बाधक बनते हैं। यदि अहंकारवश व्यक्ति दूसरों के शास्त्रों को तुच्छ समझता है-- तो मोह के कारण वह कूपमंडूक बन जाता है। निष्पक्षता उससे कोसो दूर चली जाती है। जैनाचार्य हरिभद्रसूरि की तरह वह व्यक्ति डंके की चोट, ऐसा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाताः
पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु।
युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः।। [मेरा न महावीर स्वामी के प्रति पक्षपात है और न (सांख्यदर्शन प्रणेता) कपिल आदि के प्रति द्वेष है। जिसकी बात युक्तियुक्त (तर्कसंगत) हो, उसी की बात स्वीकार करनी चाहिये]
आद्य शंकराचार्य स्नान करके अपने आश्रम को लौट रहे थे कि रास्ते में किसी भंगी (हरिजन) का स्पर्श हो गया। उन्होंने क्रुद्ध होकर कहा :- "अरे! क्या तुम अन्धे हो ? दिखता
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