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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra होने के बाद आप क्या करेंगे ?" www.kobatirth.org सन्तोषः परमं सुखम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिकन्दर :- "फिर ? तो मैं आराम से सोऊँगा।" महात्मा :- " भले आदमी! अन्त में यदि आप को आराम से ही सोना है तो अभी से क्यों नहीं सो जाते ? इतनी सारी खटपट, संघर्ष, लूटपाट और हत्याकाण्ड के बाद ही आराम से सोने का निर्णय क्यों ?" सिकन्दर इससे निरुत्तर हो गया । मन की शान्ति सन्तोष में है : • मनः संयम • [ सन्तोष ही उत्तम सुख है ] एक बुढिया रात को सड़क पर बिजली के खम्भे के नीचे सुई ढूँढ रही थी, परन्तु उसे मिल नही रही थी । इससे वह बहुत परेशान हो गई थी । -- "माँ जी! आपकी सुई खोई कहाँ थी ?" किसी आदमी ने उससे पूछा बुढिया :- “घर में खोई थी बेटा! " आदमी:- "तो घर में ही ढूँढिये । यहाँ क्यों ढूंढ रही है आप ?" बुढिया :- "यहाँ मैं इसलिए ढूँढ रही हूँ कि प्रकाश यही है, घर में नहीं ।" बुढिया की मूर्खता पर हमें हँसी आती है, परन्तु हम स्वयं भी वैसी ही मूर्खता कर रहे है । शान्ति मन में है और हम उसे वस्तुओं में ढूँढ रहे है, जहाँ वह है ही नहीं । एक बार बडे मुल्ला को साँस लेने में तकलीफ होने लगीं। डॉक्टर ने चेक - अप् किया । कोई रोग समझ में नहीं आया। उसने कहा कि आप लन्दन जाइये । वहा आपके रोग का शायद निदान होगा। मुल्ला के पास धन की कोई कमी नहीं थी। शरीर का ईलाज कराने के लिए वे लन्दन चले गये। वहाँ के सबसे अधिक प्रसिद्ध डॉक्टर से अपने शरीर का चेक-अप कराया। उसे भी कोई रोग समझ में नहीं आया। उसने सलाह दी कि दाँतों की जड़ों में कोई तकलीफ हो सकती है, इसलिए आप किसी डेन्टिस्ट के पास जाइये । For Private And Personal Use Only डेन्टिस्ट के पास जाने पर उसे भी कोई रोग समझ में नहीं आया। फिर भी उसने कहा कि आप सारे दाँत निकलवा कर नये लगवा लीजिये। मुल्ला ने वैसा ही किया । परन्तु साँस की तकलीफ ज्यों की त्यों रही। डेन्टिस्ट ने कहा :- "आप का रोग कुछ नया ही लगता है, इसलिए किसी डॉक्टर को कुछ समझ में नहीं आ रहा है। हो सकता है, यह कोई भंयकर बीमारी हो, इसलिए आप फौरन अपने देश में जाइये। अन्तिम समय अपने कुटुम्बियों के बीच आराम से गुजारिये ।" मुल्ला लौट आये। मोचने लगे कि जब इस बीमारी से आगे-पीछे मरना ही है, तब १४१
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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