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■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम ■
आज वह ग्रन्थ मौजूद है, तो पंडित वाचस्पति मिश्र की तन्मयता का कठोर साधना - निरन्तर चिन्तन का एक प्रतीक है- उदाहरण है।
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मन को यदि चिन्तन में न लगाया जाय तो वह हमारी कैसी दुर्दशा करता है ? देखिये:लखनउ पर जब अंग्रेजों ने आक्रमण कर दिया तो परास्त हो कर सारी सेना वहाँ से भाग गई। अंग्रेज राजमहल पर कब्जा करने पहुँचे तो वहाँ के सब कर्मचारी भी जान बचा कर भाग निकले। बढते और ऊपर चढते हुए अंग्रेज जब नवाब साहब के कक्ष में पहुँचे तो बड़े आराम से वहाँ बैठे थे । अंग्रेजों में से एक ने पूछा - "जब आप के सारे बाँडीगार्ड भाग चुके है। तब आप क्यों नहीं भागे ?"
इस पर नवाब साहब ने कहा :- “मैं तो भागने के लिए तैयार ही बैठा था; परन्तु मुझे जूते पहनाने के लिए कोई चाकर ही नही आया ! कैसे भागता ?"
यह है - वैभव की पराधीनता । नवाब साहब को वैभव ने जिस प्रकार गुलाम बना लिया था, उसी प्रकार मन को भी यदि वश में न किया जाय तो वह अपने शरीर को गुलाम बना देता है।
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"योगवसिष्ठ" में लिखा है :
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जडत्वान्निःस्वरूपत्वात् सर्वदैवमृतं मनः ।
मृतेन मार्य ते लोक चित्रेयं मौर्य्यचक्रिका ।।
[जड और स्वरूप (आकृति) से रहित होने के कारण मन सदा मृत (मुर्दा) ही है। इस मृत (मन) के द्वारा संसार मारा जा रहा है ! यह मूर्खता का चक्र भी कितना विचित्र है ? ]
मन किस प्रकार तृणा के द्वारा मनुष्य को मारता है ? देखिये ?
सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण करके कुछ राज्यों पर विजय प्राप्त कर ली । फिर वह किसी महात्मा के दर्शन करने गया । बड़े अभिमान से उसने अपना परिचय दिया :- “मैं सिकन्दर हूँ। अनेक देशों पर विजय प्राप्त कर चुका हूँ और अब भारत पर विजय पाने का प्रयास कर रहा हूँ ।"
महात्मा :- "भारत पर विजय पाने के बाद आप क्या करेंगे ?"
सिकन्दर :- ‘“फिर क्रमशः यूरोप, अमेरिका, जर्मन, जापान, रूस आदि समस्त देशों पर विजय प्राप्त करूँगा।"
महात्मा :- "अच्छा, पूरी पृथ्वी के समस्त राष्ट्रों पर अधिकार पाने के बाद आप क्या
करेंगे ?”
सिकन्दर :– “फिर आसमान के तारों को एक-एक करके जीतना शुरू कर दूँगा ।" महात्मा :- "अच्छी बात है; लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि पूरे विश्व पर विजय प्राप्त
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