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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ले सकता हैं ।" यह सुनकर एक यात्री तैयार हो गया। उसने एक तीसरे यात्री को साक्षी बनाकर चालीस मक्कायात्राओं के पुण्य के बदले एक रोटी दे दी । रोटी उस भूखे कुत्ते को अबुलकासिम ने बहुत प्रेम से खिलाई और फिर अपनी यात्रा पर चल पड़े ! कितना बड़ा त्याग ? कैसा अनोखा परोपकार ? ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम संत विनोबा ने देव और राक्षस की बहुत अच्छी परिभाषा मराठी में लिखी है :"देऊन टाकतो तो देव! राखून ठेवतो तो राक्षस!" [ जो दे डालता है, वही "देव" है और जो रख लेता है, वही " राक्षस " है ।] किसी राजा ने अपने मन्त्री से पूछा कि देवों और दानवों में क्या अन्तर है ? मन्त्री :- “आपके इस प्रश्नका उत्तर मैं कल दूंगा।" दूसरे दिन उसने राजमहल की ओर से सौ ब्राह्मणों को भोजन के लिए निमन्त्रण भेजा । पहले पचास ब्राह्मणों को पच्चीस-पच्चीस की दो पंक्तियों में आमने-सामने बिठाया गया । मन्त्री सब के दाएँ हाथ पर बाँस का एक-एक डंडा इस तरह बँधवा दिया कि हाथ मुड़ न सके। परिणाम यह निकला कि सब के सामने परोसी हुई थालियाँ पड़ी रहीं और वे सबके सब भूखे ही बैठे रहे । हाथ खुलवाने पर ही सब ने भोजन ग्रहण किया । १३४ घंटेभर बाद दूसरे पचास ब्राह्मणों को भी इसी तरह पच्चीस-पच्चीस की दो पंक्तिों में दाहिने हाथों पर बाँस के टुकड़े बाँधकर जीमने बिठाया गया। उन्होंने सोचा कि हाथ मुड़ नहीं सकता तो क्या हुआ; सामने तो पहुँच ही सकता है ? तब वैसा क्यों न किया जाय ? इस विचार पर आचरण का परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक पंक्ति में बैठे ब्राह्मणों ने हाथ लम्बा करके अपने सामने बैठे ब्राह्मणों के मुँह में कौर देना शुरू कर दिया। इस प्रकार सब ने भरपेट भोजन किया। राजा ने सब को बिदाई दी। फिर राजा से मन्त्री ने कहा :- "देखिये, यह सब मैंने आपके प्रश्न का प्रत्यक्ष उत्तर देने के लिए ही किया था। पहली बार जो भोजनार्थ बैठे थे, वे दूसरों को देने के लिए तैयार ही नहीं थें। आप उन्हें 'दानव' समझ सकते हैं। इससे विपरीत जो दूसरी बार बैठे थे, वे एकदूसरे को खिलाकर खाते रहे। आप उन्हें 'देव' समझ लीजिये।" इंग्लैड के सुप्रसिद्ध कवि गोल्डस्मिथ रोगियों का इलाज भी करते थे, एक दिन की बात है। कोई घबराई हुई महिला बीमार पतिदेव का इलाज कराने के लिए उन्हें अपने घर बुला कर ले गई। कवि ने क्षणभर में जान लिया कि निर्धनता के कारण उत्पन्न मानसिक चिन्ता से ही पति महोदय की यह दुर्दशा हुई है । कविने कहा :- ' "मैं घर जाकर एक दवा भेज दूंगा । उससे इनका स्वास्थ सुधर जायगा। आप कोई चिन्ता न करें।" For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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