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• धर्म •
आम जनता को बुद्धि का प्रयोग करने की फुरसत नहीं होती; इसलिए शास्त्रो के नाम पर कही गई हर बात पर वह विश्वास करके धोखा खाती है। हजारों वर्षो तक शास्त्र के नाम पर भारतवर्ष में हिंसक यज्ञ होते रहे हैं। मांस लोलुप पंडितों ने यज्ञों में पशु-वध करके स्वयं तो मांस खाया ही, प्रसाद के नामपर आम जनता को भी उन्होंने मांस खाने को मजबूर किया है; इसीलिए प्रभु ने घोषणा की थी कि बुद्धि से धर्म की जाँच करो और फिर वह पालन - योग्य लगे तो उसका पालन करो।
अहिंसा और नैतिकता- ये दोनों धर्म के प्राण हैं- आक्सीजन हैं। इनके अभाव में धर्म जीवित नहीं रह सकता
भारत में धर्म-प्रचारक कैसे हुए है ? शस्त्रों से या प्रलोभन से यहाँ धर्म प्रचार नहीं किया गया। तर्क के बल पर यहाँ धर्मात्मा महात्माओं ने धर्म का स्वरूप समझाने का प्रयास किया है। धन के त्यागी साधु किसी को धन का प्रलोभन दे भी नहीं सकतें थे। अपनी प्रवचन कला से ग्रामानुग्राम विहार कर के उन्होंने लोगों की बुद्धि को जागृत किया, जिस से वे स्वयं सच्चे धर्म को पहिचान सकें और उसे अपना कर अपने जीवन को सफल बना सके। केवल प्रवचन से ही नहीं, अपने जीवन से भी उन्होंने लोगों के सामने यह आदर्श उपस्थित किया कि सम्यग् ज्ञान के प्रकाश में चलना ही धर्म है ।
किसी बडे आदमी से मुलाकत के समय हमारा साथी हमारा परिचय देता है, उसी प्रकार धर्म भी हमारी आत्मा का परिचय सब को देता है ।
मन्दिर - मस्जिद - चर्च में पूजा - नमाज - प्रार्थना से कोई अपने को धर्मात्मा के रूप में "दिखा" सकता है, किन्तु अन्तस्तल और आचरण की पवित्रता के बिना वह धर्मात्मा "बन" नहीं सकता !
चम्मच से कोई पूछे कि तुम घण्टेभर से श्रीखण्ड परोस रहे हो तो बताओ, उसका स्वाद कैसा है ? इस पर वह क्या कहेगा ? कहेगा- "टेस्टलेस हूँ!” यही बात आप लोगों में से अधिकांश पर लागू होगी। आप धर्मस्थानों में जाते है, लोगों को दिखाने के लिए धार्मिक क्रिया भी करते है; परन्तु वे सब टेस्टलेस लगते है- किसी में कोई स्वाद ही नहीं आता ?
धार्मिक क्रियाएँ आनन्द के लिए हैं-- बिना समझ अनुकरण के लिए नहीं ।
बड़े मुल्ला हजारों मुसलमानों को एक सरोवर के तट पर नमाज पढ़ा रहे थे । सहसा उन्हें पीठ पर खाज चलने से जरासा - खुजलाना पड़ा नमाजियों ने समझा कि यह भी क्रिया नमाज का एक अंग होगी, इसलिए अगली पंक्तिवालों ने अपनी-अपनी पीठ खाज न चलने पर भी खुजलाई । इस से पीछे की पंक्ति में जो लोग थे, उन्हें कोहनी सें धक्का लगा। उन्होने धक्के को नमाज का अंग समझकर अपने से पिछे वालो को कोहनी से धकियाया । पीछे वालों ने और पीछे वालों के साथ ही व्यवहार किया। इस प्रकार अन्तिम पंक्ति में बैठे लोगों को जब
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