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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम । जरामरणवेगेणं बुज्झमाणाण पाणिणं। धम्मो दीवो पईठ्ठाय गइ सरणमुत्तमम्।।
-उत्तराध्ययन (बुढापा और मृत्यु के प्रवाह में बहने वाले प्राणियों के लिए धर्म द्वीप है-प्रतिष्ठा है --गति है और है-उत्तम शरण) इसी ग्रन्थ में अन्यत्र प्रभु महावीर ने फरमाया है :-- "दगो हु धम्मो नरदेव! ताणम् ।।"
-उत्तराध्ययन [हे राजन् ! एक धर्म ही त्राण है- रक्षक है (सब जीवोंका)]
वैशेषिक दर्शन के अनुसार जिस से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का सुख प्राप्त होता है, वही धर्म है :
यतोभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः॥ (जिस से बाह्य और आभ्यन्तर-दोनो प्रकार का सुख सिद्ध हो, वही धर्म है।)
भौतिक समृद्धि में वृद्धि भी तभी होती है, जब उसमें नैतिकता हो- प्रमाणिकता होईमानदारी हो, जो अपने आप में धर्म है और आत्मकल्याण की सिद्धि तब होती है, जब अन्तस्तल के राग द्वेष को बूरा माना जाय-मनको निर्मल बनाया जाय, जो अपने आप में धर्म है। कहा है:
अन्तःकरणशुद्धित्वं धर्मत्वम्।।
(चित की शुद्धि ही धर्म है।) गाय काली हो, पीली हो, सफेद हो या लाल- दूध तो वह सफेद ही देगी। इसी प्रकार विभिन्न मजहबों में -सम्प्रदायों में बातें तो धर्म की ही होगी। हमें ऊपर का लेबल नहीं, माल देखना है। क्रीम निकले हुए दूध की तरह बहुत-से लोग धर्म बाँटते हैं, परन्तु उससे शान्ति नहीं मिलती। मनको तसल्ली भले ही हो जाय कि मैंने दूध पीया है; परन्तु उससे शकित नहीं मिलेगी; इसलिए दूध की भी परीक्षा करनी चाहिये कि वह पेय है या नहीं-शक्तिवर्धक है या नहीं। धर्म की भी इसी प्रकार परीक्षा करके उसे ग्रहण करना है। परीक्षा करने का तरीका प्रभुने बताया है :पत्रा सम्मिक्सए धप्पम्॥
-उत्तराध्ययनसूत्र (बुद्धि ही धर्म की समीक्षा कर सकती है- परीक्षा कर सकती है- निर्णय कर सकती है।)
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