SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •दान. दूसरी बार उसे फिर व्यापार के लिए भेजा गया; किन्तु उसे मालूम हुआ कि एक जगह टैक्स न चुका सकने के अपराध मे कई लोगों को बन्दी बना लिया गया है। उसने अपना माल से लदा जहाज बेचकर प्राप्त सम्पत्ति से उसका सारा टैक्स चुका दिया। वे सब बन्धनमुक्त हो गये। इस कृपा के लिए सब लोगों ने उसे हार्दिक धन्यवाद दिया। पिताजी फिर नाराज हुए; परन्तु दोनों यात्राओं से पुण्य का जो उपार्जन हुआ था, उससे वह सन्तुष्ट था। तीसरी बार फिर कठोर चेतावनी देकर दोब्रीवे को व्यापारार्थ विदेश-यात्रा के लिए भेजा गया। उधर रूस का बादशाह अपनी पुत्री को ढूँढता हुआ एक बन्दरगाह पर आया वहाँ अपनी पुत्री की अंगूठी दोब्रीवे की अंगुली में देख कर वह बहुत प्रसन्न हुआ। पिछला सम्पूर्ण वृतान्त सुनकर उसने उससे कहा- "मैं तो रूस लौट कर जा रहा हूँ। मेरा यह मन्त्री आप के साथ रहेगा। आप अपने पूरे परिवार को साथ लेकर रूस में आजाइयेगा।" __मन्त्री के साथ दोब्रीवे--परिवार रूस की ओर चल पड़ा। रास्ते में मन्त्री ने दोब्रीवे को समुद्र में ढकेल दिया। उसने सोचा कि इससे असहाय होकर राजकन्या मेरा वरण कर लेगी और मैं राजा का जामाता बन कर मौज करूँगा; परन्तु राजकन्या ने उस धोखेबाज को पति बनाना उचित नहीं समझा; फिर भी समुद्र पार करना था; इसलिए उसने मन के भाव छिपा कर मुस्कुराते हुए कहा कि- रूस पहुँचकर मैं इसका निर्णय करूँगी। उधर एक व्यक्ति ने प्राप्त सम्पत्ति का आधा भाग देने की शर्त पर दोब्रीवे को सुरक्षित रूप से रूस के राजमहल तक पहुँचा दिया। उसे देखकर प्रसन्न बादशाहने उसे रूस का पूरा राज्य सौंप दिया। ___ दोब्रीवे ने मन्त्री को क्षमा कर दिया। शर्त के अनुसार उस व्यक्ति को जब वह आधा राज्य देने लगा तो उसने लेना अस्वीकार कर दिया। दान अस्वीकार करके उदारता मे वह दोबीवे से भी दो कदम आगे बढ़ गया। वैसे रहीम साहब (जो स्वयं बहुत बड़े दानी थे) का विचार था कि यदि आवश्यक वस्तु दान में मिल रही हो तो लेने में कोई संकोच नहीं करना चाहिये; क्योंकि जो दे सकते है; वे देते हैं और जिन्हें जरूरत होती है, वे माँगते हैं : कोड 'रहिम' जनि काहुके, द्वार गरे पछिताय। सम्पति के सब जात हैं, विपति सो ले जाय।। धनवान के पास सब को निर्धनता ले जाती है- इसलिए वहाँ जाने में किसी को पछताना क्यों चाहिये? . रहीम साहब जब दान करते थे तो अपनी आँखे जमीन की ओर टिकाये रखते थे। इसका कारण पूछने पर वे बोले : .१११ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy