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१३. त्याग
त्यागानुरागी महानुभावो !
भोगों के क्षणिक सुख में बहुत आकर्षण होता है; परन्तु कभी आपने सोचा है कि भोग का सुख भी त्यागपर अवलम्बित है ? आप प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर त्याग करने जाते हैं। यदि उसमें कोई गड़बड़ नहीं हुई तो भोजन का सुख मिलेगा; अन्यथा भोजन से पहले भागकर डाक्टर के पास जायँगे और प्रार्थना करेंगे :- "डाक्टर साहब! पेट में कब्ज हो गया है- अजीर्ण हो गया है - आज सुबह ठीक से त्याग नहीं हुआ...."
इस प्रकार जब क्षणिक सुख के लिए भी त्याग अनिवार्य होता है, तब शाश्वत सुख के लिए त्याग को अनिवार्य बताया जाय तो कोई आश्चर्य जैसी बात नहीं ।
गीता में लिखा है :
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त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ॥
[ त्याग के बाद तत्काल शान्ति मिलती है (अनन्तर = अन्तर- रहित अर्थात् शीघ्र ) ] आज पढ़े-लिखे लोग विश्वशान्ति (वर्ल्डपीस) की गम्भीर चर्चाएँ करते है; परन्तु अपने भीतर जो अशान्ति भरी पड़ी है, उसे मिटाने का कोई विचार ही नहीं करते! जिन्हें तैरने की कला न आती हो - ऐसे चार आदमी समुद्र में मिल जायँ, एक दूसरे को पकड़ लें तो परिणाम क्या होगा ? वे और भी जल्दी डूबेंगे ! यही हाल इन लोगों का होता है ।
हमारे प्रभु का एक विशेषण है- वीतराग । जहाँ राग है, वहाँ दुःख है और जहाँ त्याग है, वहाँ सुख है :
नास्ति रागसमं दुःखम् नास्ति त्यागसमं सुखम् ॥
(राग के समान कोई दुःख नहीं है और त्याग के समान कोई सुख नहीं है ।)
फुटबॉल के मैदान में देखिये । यदि वहाँ कोई खिलाड़ी बॉल पकड़कर बैठ जाय तो किसी को खेल का आनन्द ही नहीं आयगा । सम्पत्ति भी उस बॉल के समान किक मारने के लिए है। जिसके पास बॉल जाती है, वही उसे किक लगाता है। खिलाड़ी फुटबॉल के पीछे दौड़ता है- -आप भी धन के पीछे दौड़ धूप करते है; परन्तु यह मत भूलिये कि खिलाड़ी का उद्देश्य क्या है ? उसका उद्देश्य होता है - किक लगाना । बादल पानी का संग्रह क्यों करता है ? पानी बरसाना ही तो उसका उद्देश्य है ?
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जिस धन का संग्रह त्याग के लिए किया जाता है, वह परिग्रह नहीं कहलाता । साइकिल पर बैठकर यदि कोई पूरे विश्व का पर्यटन करने निकले तो उसे कई वर्ष लग जायँगे ।. इससे विपरीत सुपरसोनिक (अतिस्वन) विमान का उपयोग करनेवाला अपना पर्यटन शीघ्र समाप्त
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