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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम ■ देखकर कोई मुझ से काम भी लेना नहीं चाहेगा। मासिक वेतन भी आधा मिलेगा; इसलिए क्यों न इस बिल्डिंग में घटिया माल लगाकर अधिक से अधिक राशि भविष्य के लिए बचा लूँ । इस प्रकार प्रलोभन के मार्ग से उसके मन में छल ने प्रवेश कर लिया । घटिया सामग्री लगाकर ऊपर से बढिया रंग-रोगन चढ़ा कर निर्धारित अवधि तक उसने बिल्डिंग तैयार कर दी । महाराज से जाकर उसने निवेदन किया कि आप चलकर बिल्डिंग का निरीक्षण कर लें। राजा ने कहा- “वाह! आपके काम का निरीक्षण कैसा ? जब आपकी देख-भाल में कार्य हुआ है तो अच्छा ही हुआ होगा।" अगले दिन नागरिकों की ओर से कारीगर का अभिनन्दन समारोह हुआ । भरी सभा में राजा ने उनकी पिछली सेवाओं की प्रशंसा करते हुए घोषणा की कि - नदीतट पर जो नया भवन इन्होंने बनाया है, वह राज्य की ओर से मैं इन्हीं को भेंट करता हूँ । अब वृद्धावस्था के कारण इन्हें आराम की आवश्यकता है । वे अपने परिवार सहित उसी भवन में जाकर आराम से रहें । राज्य की ओर से जीवन निर्वाह के लिए उन्हें आधा वेतन बिना काम लिये ही पेन्शन के रूपमें आजीवन मिलता रहेगा। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागरिकों ने इस घोषणा का अनुमोदन किया और तालियाँ बजाकर हार्दिक हर्ष व्यक्त किया; परन्तु ऐसा भव्यभवन भेंट पाकर भी कारीगर के चेहरेपर प्रसन्नता का कोई भाव नहीं दिखाई दिया। क्यों ? वह जानता था कि भवन कमजोर है, उसमें घटिया सामान लगा है और कुछ ही वर्षो में वह धराशायी हो जानेवाला है। ९६ लोकलाज से उसने नदीतट पर रहना तो प्रारंभ कर दिया; किन्तु भीतर-ही-भीतर पश्चात्ताप और चिन्ता से वह घुलता रहा। उसके छल ने उसी को छल लिया। मानसिक आघात से वह कुछ ही महीनों बाद चल बसा। दो-तीन वर्ष बाद भवन भी गिर पड़ा! उसका परिवार अनाथ हो गया । "मियाँ की जूती मियाँ के सिर" वाली कहावत चरितार्थ हो गई। इसी प्रकार एक हत्यारे को वकील ने समझा दिया कि कोर्ट में कोई कुछ भी पूछे, तुम केवल एक ही उत्तर देना- "बकरी बैं"। बाकी तो मैं सब सँभाल लूँगा । दण्ड से बचाने के लिए वकील ने पाँच हजार रु. फीस ठहराई और पाँच सौ रू. अग्रिम ले लिये। कोर्ट में न्यायाधीश के पूछने पर वह बोला :- "बकरी बै!” जज :- "अरे, क्या तू पागल हो गया है ?" हत्यारा :- "बै" जज ने उसे पागल मानकर मुक्त कर दिया। हत्यारे ने घर जाकर सोचा मेरी फाँसी स्पष्ट, जब इस "बै" ने टाल दी ! नहीं मिटेगा कष्ट क्या इस "बै" से फीसका? For Private And Personal Use Only -
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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