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कुछ लोग वाणी के शूर होते हैं, वे आजके राजनेताओंकी तरह आश्वासन देते हैं-बहुत कुछ बोलते हैं; परन्तु करते कुछ नहीं । उनके मन में कुछ, वचनमें कुछ और कार्य में कुछ और ही नज़र आता है। महात्माओं और दुरात्माओंका यही भेद है :
मनस्येकं वचस्येकम् कर्मण्येकं महात्मनाम् ।
मनस्यन्यद्वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यदुरात्मनाम् ॥ [महात्मा वे हैं; जिनके मन, वचन और कार्य एक-से होते हैं ओर दुरात्मा होते हैं वे, जिनके मन-वचन-कार्यों में भिन्नता होती है]]
कबीर साहब ने ऐसे दुष्टों को फटकारा है; जो बोलते हैं, वैसा करते नहीं :
कहते सो करते नहीं, मुह के बड़े लबार ।
काला मुंह हो जायगा, साई के दरबार ॥ प्रभु महावीर ने भी उन लोगों की प्रकृति का उल्लेख इन शब्दों में किया है :
भणन्ता अकरिता य बन्धमोवखप्परिण णो ।
वायाविरियमेत्रणम् समासासन्ति अप्पयम् ॥ [बन्ध और मोक्ष की विस्तार से चर्चा करने वाले कहते हैं, किन्तु वैसा करते नहीं है। वाणी के बल से ही अपने आपको आश्वस्त करते हैं-समझा लेते हैं] । दूसरों को उपदेश देकर समझते हैं कि वे ज्ञानी हो गये हैं; परन्तु वे भ्रम में हैं। जो आचरण करते हैं, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं। आचरण में उपदेश को जो नहीं उतार पाते, वे तो व्यापारी हैं :
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