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के साथ ही मुग्ध होकर महाराज उठे और आलिंगन-चुम्बन के लिए उसकी और लपके। ठीक उसी समय चाणक्य के इशारे पर दीपक बुझाकर एक सैनिक ने तलवार का सधा हुआ वार किया और विषकन्या का सिर धड़ से अलग होकर धड़ामसे गिर पड़ा! साथ ही चाणक्य की आवाज़ भी सुनाई दी:
"वृषल ! राज्यस्य मूलमिलिन्द्रियजयः ॥ [हे चन्द्रगुप्त ! राज्य का मूल है-इन्द्रियो पर विजय पाना]
फिर उसे (चन्द्रगुप्त को) विषकन्या का परिचय दिया और उसे फंसा कर मारने की कई दिनों से चल रही योजना समझाई । वह सारी बातें सुनकर चाणक्य की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करने लगा।
इस घटना से इन्द्रियों के अनुशासन की शिक्षा मिलती है। जो लोग अपने से अधिक बुद्धिमान हैं, विद्वान् हैं, अनुभवी हैं, उनकी आज्ञा का पालन हमें करना चाहिये।
आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया ॥ [गुरुओं की आज्ञा का पालन बिना विचार किया जाना चाहिये]
सतामलङध्या गुर्वाज्ञा [गुरुषों की आज्ञा का सज्जन कभी उल्लंघन नहीं करते
इसीसे मिलती-जुलती बात मैथिलीशरणजी गुप्त ने कही है :
बड़ों की बात है अविचारणीया । मुकुटमणि तुल्य शिरसा धारणीया ॥ एक जाट की पत्नी आज्ञा का पालन नहीं करती थी। पतिदेव जो कुछ कहते, उससे ठीक उलटा कार्य करती थी।
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