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सारी वेदना चुपचाप सहते रहे। फिर संकल्प किया कि यदि दुबारा किसी युवति के शरीर पर आसक्त हुई तो उन्हें सुई से फोड़ कर सदा के लिए सूरदास बन जाऊंगा। इस संकल्प के प्रभाव से जीवनभर वे सुशील बने रहे। इसे कहते हैंआत्मानुशासन ।
__ पहले जब किसी पुत्र से कोई भूल हो जाती थी तो वह हाथ जोड़ कर कहता था-"पिताजी ! मुझे माफ कर दीजिये । दुबारा ऐसा नहीं करूंगा।" इससे विपरीत आजकल स्वयं पिताजी कहते हैं--"बेटे ! मुझे माफ कर देना। दुबारा ऐसा नहीं कहूँगा।' ऐसे सपूतों को पता ही नहीं है कि यह अनुशासन कौन-सी चिड़िया का नाम है। कितना परिवर्तन हो गया है आज समाज के प्रत्येक सदस्य में !
पठान जिस प्रकार व्याजसहित धन वसूल करता है, उसी प्रकार पेट भी भोजन वसूल करता है । भोजन के बाद भी कहता है-चरन लाओ, सुपारी लाओ, सौंफ लामो, इलायची लाओ, लौग लाओ, पान लायो। यदि आप उसकी आज्ञा का पालन करते रहे तो वह आपको नचा मारेगा।
रे जिह्वे ! कुरु मर्यादाम् भोजने वचने तथा ।
वचने प्राणसन्देहो भोजने चाप्यजीर्णता ॥ [हे जीभ ! भोजन और वचन में तू मर्यादा रख। यदि अमर्यादित वचन बोलेगी तो प्राण संकट में पड़ जायेंगे और यदि अमर्यादित भोजन करेगी तो अजीर्ण हो जायगा।]
जीभ से हम दो काम करते हैं-खाते हैं और बोलते हैं। दोनों में संयम की ज़रूरत है; अन्यथा अनर्थ होते देर नहीं लगेगी।
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