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जहाँ मैं उदासीन होता हूँ, वही स्वभाव से सन्तुष्ट होकर
मैं प्रसन्नतापूर्वक रहता हूँ ]
बम्बई की चौपाटी पर एक बालक-बालूका घरौंदा बना रहा था कि उसी समय उसके पिताजी ने उसे पुकारा 1 तत्काल वह उठा और घरौंदा तोड़ कर चल दिया । उसे कोई दुःख नहीं हुआ । ममता का अभाव हो तो किसी मी वस्तु के त्याग से या वियोग से मन दुःखी नहीं होता ।
ममता होती है अज्ञान से । अधूरा ज्ञान भी अज्ञान ही है, जो मनुष्य को हँसी का पात्र बनाता है ।
हेनरी चतुर्थ के समय की यह घटना है । भारत के ताजमहल को देखकर हेनरी बहुत प्रभावित हुआ था । उसने वैसा ही ताजमहल अपने देश में बनवाने की इच्छा पगट की । किसी ने सुझाव दिया कि हिन्दी जानने वाले किसी आदमी को भारत भेजकर ताजमहल बनाने वाले कारीगर को उसके साथ यहाँ बुलवा लिया जाय तो आपकी इच्छा पूरी हो सकती है । इस सुझाव को स्वीकार करके राजा ने टूटी-फूटी हिन्दी जानने वाले एक आदमी के नेतृत्व में कुल पाँच आदमियों का एक प्रतिनिधि मण्डल भारत भेज दिया ।
भारत आकर वह सीधा आगरे पहुँचा । आगरे में ताजमहल देखकर वह प्रतिनिधि मण्डल भी अत्यन्त प्रसन्न हुआ । जानकारी पाने के लिए वहाँ फाटक के पास खड़े एक ग्रामीण से जब पूछा गया कि यह ताजमहल किस कारीगर ने बनाया तो उत्तर मिला : "मालूम नहीं साहब !
फिर प्रतिनिधि मण्डल क्रमश: जयपुर, उदयपुर, देलवाडा, चित्तौडगढ़, ग्वालियर आदि अनेक स्थानों पर गया ।
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