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संवेदनशील राजा के कोमल हृदय पर इस बात का अमिट अद्भुत प्रभाव हुआ। उसने भंडारी से खज़ाने के समस्त रत्नों की नीलामी लगवा दी। उस से जो कुछ धन प्राप्त हुआ, उसका उपयोग उसने अनेक जनहितकारी कार्यों में किया। इस से सारी प्रजा उसकी प्रशंसा करने लगी। इस प्रकार सारे रत्नों को बेचकर बदले में उसने सुयशरूपी स्थायी रत्न प्राप्त कर लिया।
"सर्वभावेषु मूर्छायास्त्यागः स्यादपरिग्रहः ॥" [सब वस्तुओं से अपनी आसक्ति हटाना ही अपरिग्रह हैं]
प्राप्त परिग्रह (धन) का उपयोग निरन्तर परोपकार में करते रह कर विवेकी लोग सदा सर्वत्र अपने मित्रों की संख्या में अधिक से अधिक वृद्धि करते रहते हैं।
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