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मित्रता प्रायः समान स्वभाव वालोंमें होती है । कहा है : मृगा मुर्गे सङ्गमनुव्रजन्ति गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरङ्गः । मूर्खाश्च मूर्खे: सुधियः सुधीभिः समानशीलव्यसनेषु मैत्री ॥ [हरिण हरिणों के, गायें गायोंके, घोड़े घोड़ों के, मूर्ख मूर्यो के और बुद्धिमान बुद्धिमानों के पीछे जाते हैं, क्योंकि समान स्वभाव और व्यसन वालों में मित्रता होती है]
हिन्दी में एक कहावत है : "नादान की दोस्ती और जी का जंजाल !" एक और कहावत है : "नादान दोस्त से दाना दुश्मन अच्छा !"
दाना का अर्थ है - बुजुर्ग या समझदार । मूर्ख मित्र की अपेक्षा समझदार दुश्मन को अच्छा बताया गया है :
हरेः पादाहति : श्लाध्या न श्लाध्यं खररोहणम् ।
स्पर्धापि विदुषा श्लाध्या न श्लाघ्या मूर्खमित्रता ॥ [सिंह की लात अच्छी, किन्तु गधे पर सवारी भी अच्छी नहीं । विद्वान से स्पर्धा भी प्रशंसनीय है, परन्तु मूर्ख की मित्रता अच्छी नहीं]
एक राजस्थानी सोरठे में भी कुमित्रों से दूर रहने की सलाह इस प्रकार दी गई है :
मुख ऊपर मीठास, 'घटमाहो शोटां घड़े । इसड़ास इखलास राखीजे नहिं राजिया !
चाणक्यनीति का यह श्लोक भी कुमित्रों से दूर रहने का हमें सुझाव देता है :
परोक्षे कार्यहन्तारम् प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् ।
वर्जयेत्तादृशं मित्रम् विषकुम्भं पयोमुखम् ।। १. मन में बुराइयों की कल्पना करे । २ ऐसोंसे । ३. मेलमिलाप या मित्रता । ४. एक शिष्य का नाम ।
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