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२३६ क्रोध का पार न रहा। सैनिकों की एक टुकड़ी को आदेश दिया कि वह वीरसिंह को कैद करके दरबार में उपस्थित करे।
टुकड़ी गई; किन्तु वीरसिंह ने उस टुकड़ी को अपने युद्ध कौशल से खदेड़ दिया।
दूसरी बार राजाने चौगुने सैनिक भेजे । वीरसिंह वीरतापूर्वक युद्ध करता रहा । सस्तक कट जाने पर भी उसका धड़ लड़ता रहा।
अन्त में जहाँ मस्तक गिरा, वहाँ पर हिन्दुओं ने और जहाँ धड़ गिरा, वहाँ पर मुसल्मानों ने उनका स्मारक बनाया; क्योंकि मुक्त जोड़ों में हिन्दु भी थे। और मुसल्मान भी।
आज भी लोग “बन्दी छोड़ महाराज' के नाम से उनका आदर के साथ स्मरण करते हैं।
एकेनापि सुपुत्ररण सिंही स्वपिति निर्भयम् ।
सहैव दशभिः पुत्रेारं वहति गर्दभी ॥ [एक सुपुत्र से भी सिंहनी निर्भय होकर सोती है, परन्तु गघी अपने दसों पुत्रों के साथ भार ढोती है]
सुपुत्र वही है, जिसमें मानवता के गुण विकसित हुए हों।
बुद्धिपरीक्षा के लिए एक शालानिरीक्षक ने किसी कक्षा के भीतर जाकर छात्रों से एक प्रश्न किया : “तुम यहाँ पढ़ने क्यों आते हो?"
प्रश्न ब्लेकबोर्ड पर लिख कर आदेश दिया गया कि तुम इसका उत्तर कागज के टुकड़े पर अलग-अलग लिख कर दिखाप्रोगे। जिसका उत्तर सर्वश्रेष्ठ होगा, उसे पुरस्कार दिया जायगा।
सबने अपना-अपना लिखित उत्तर प्रस्तुत कर दिया। निरीक्षक ने उन्हें पढ़ा। कुछ उत्तर इस प्रकार थे :
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