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आप कहेंगे : "महाराज ! शक्ति तो है, पर भावना नहीं है।"
स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में गये थे। वहाँ उनकी प्रतिभासे चमत्कृत होकर एक महिलाने प्रार्थना की : "मुझे आपके समान तेजस्वी बालक चाहिये। आप मुझसे विवाह कर लीजिये, जिससे आपके समान प्रतिभाशाली पुत्र प्राप्त करने की मेरी अभिलाषा पूरी हो सके ।"
उन्होंने उत्तर दिया : “यदि ऐसी आपकी अभिलाषा है तो आप मुझे ही अपना पुत्र मान लीजिये माताजी ! जीवनभर विवाह न करने का जो मैंने व्रत लिया है, मुझे उसका पालन करना है। व्रत जीवन है मेरा। व्रत को तोड़ना मेरे लिए मृत्यु से बढ़ कर दुःखद होगा।"
इसे कहते हैं - भावना की दृढ़ता।
एक दिन उनके पाँवों में जूते की ओर संकेत करते हुए किसी ने उनसे कहा : "स्वामीजी ! आपने पाँवों में अमेरिकन जूते कहों पहिन रक्खे हैं ?"
बोले : "भाई ! पाँव मेरे दौकर हैं। नौकर किसी भी देश का हो सकता है। हाँ, मस्तिष्क भारतीय है-विचारों में भारतीयता है; इसलिए मस्तक भारतीय साफ से ढका है।"
हमारा मस्तिष्क बुद्धि का निवास है । वह शुद्ध भावना से अलंकृत होना चाहिये।"
विवाह के समय "सावधान" शब्द सुनकर स्वामी रामदास विवाह मण्डप से भाग गये। उन्होंने सोचा कि यहाँ खतरा होता है, वहीं सावधान हो जाना चाहिये ।
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